कर्मयोगी कुलिशजी
कुलिश के बिन कलम का कारवां इस हाल में
दीपक नहीं हो जैसे कि पूजा के थाल में
धरती का लाल आज सितारों में जा बसा
फलक के फरिश्तों की कतारों में जा बसा
दीपक गया वो देवता की देख भाल में
साथी सखा समाज का वो सारथी रहा
शब्दों के मोतियों का सदा पारखी रहा
अहिंसा का दूत था मेरे भारत विशाल में
साधक वो साधना का सरोवर थमा गया
सदियों का प्यार एक जनम में ही पा गया
लिपटा है लाडला वो तिरंग की शाल में
ऊँचे खरे ख्याल का खुद्दार आदमी
वो गुल गुलिस्तां हो गया गुलजार आदमी
लाऊँ कहाँ से ढूंढ के ऐसी मिसाल मैं
होना फरेब फर्ज का आला मकाम हो
जालिम हो बेनकाब खुला इन्तकाम हो
इन्साफ का हामी वो सियासत की चाल में
रोशन रहेंगी राहें तुम्हारे असुल में
माहौल महका-महका अकीदत के फूल से
मर्यादा मौन मिल गई चन्दन गुलाल में
सोडा के पूत पर हमेशा नाज रहेगा
दुनिया में वो इन्साफ की आवाज रहेगा
तस्वीर देखते हैं हम उनकी गुलाब में
ऐ बागबान बहार पे तेरी नजर रहे
दुःख सुख में वक्त-वक्त पे सबकी खबर रहे
साया रहे तेरा सदा समय की चाल में
याद-ए-चराग को कभी बुझने ना देगें हम
परचम कुलिश के मान का झुकने न देगें हम
जब्बार, जन सैलाब था जिसके विसाल में ।