Maan-baap माँ-बाप (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-36)

 माँ-बाप 

रूठे तो रूठ जायें भले भाग किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


आँचल में सदा माँ के हमें स्वर्ग मिला है

 बचपन से जवानी का हंसी फूल खिला है 

माँ के बगैर ज़िन्दगी वीरान किला है


 मेरे ख्याल में यह जज़्बात सभी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


 ये प्यार वो है जिसको ख़रीदा नहीं जाता

 ममता के मोल को कभी आंका नहीं जाता 

वो खुश नसीब साया जो माँ-बाप का पाता


 मेरे खुदा ना हो कोई मोहताज किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


जिन पर गज़ब हुआ है उसे प्यार दीजिये

       मुरझाई जिंदगी को फिर बहार दीजिये 

 यतीम को समाज में सत्कार दीजिये 


वरना ये भूख देश को सौगात नहीं दे 

दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


गुज़री नहीं कभी खुशी जिनके करीब से

 हमने किये सुलूक भी जिनसे अजीब से 

होता खुदा गरीबी में ख़फा गरीब से


 औलाद वालों तुम भी तो माँ-बाप किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के