Naaree नारी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-38)

 नारी 

   ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

    फिर समाज ना करे उपेक्षा तेरी दुःख भारी सुन ले 


     एक कली तू नाज की पाली बाबुल की फुलवारी में

     पड़ी जमाने की नज़रें क्या गुज़री तुम बेचारी पे

     जोड़े रिश्ते नाते सारे बाली उम्र कुंवारी में

     दीप जलाए लाज की खातिर धाकी हर लाचारी में

     नमक मसाले याद रहे सब भूली दुनियादारी में


   फिर तेरा सम्मान नहीं है 

   ये नर भी अन्जान नहीं है 


      इस सम्मान का हर पहले खंजर है दो धारी सुन ले 

       ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुनले

 अनजाने ने साथी को जीवन अर्पण तूने क्यूँ कर डाला

        जोश जवानी में सुधबुध भूली जीवन कर दी ज्वाला 


भरी वासना की नज़रों ने बेसबरी से मथ डाला

 अनचाहे ही बच्चों की मां बन धरती का बोझ बढ़ा डाला 

कोई नंगा भूखा प्यासा रोगी या कोई और ख़राबी है 

और निराशा फैले जब नंगों का बाप शराबी है 


अबला समझा कहर किया

 अमृत के बदले जहर दिया 


         हक है तेरा तू छीन के ले ना बन अब बाज़ारी सुन ले 

ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

दुर्योधन ना हो फिर पैदा के चीर तेरा खिंचवाया है

  लाख सहे अपमान मगर धीरज धन तूने पाया है 


अधिकार तेरा तू छीन के ले सदियों तुझको तरसाया है

 तूफान उठे तो उठने दे तुझ पर गंगा का साया है 

फैशन पर परवाज़ ना कर संघर्ष भरा युग आया है

                                            भाग्यवान है के तूने भारत का गौरव पाया है 


                                                       मत धरती का बोझ बढ़ा 

                                                      ये देश तो पहले से ही बड़ा 


                                      मन मानी रोक ज़रा नर की आई बारी सुन ले 

                                     ए भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले