Karmayogi कर्मयोगी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-32)

 कर्मयोगी

किस्मत किसने खोलके देखी, किसने देखा भाग्य विधान

कब धनवान बने निर्धन और निर्धन बन जाये धनवान 


कब किसके घर चावल फुली पके किसी के घर पकवान

सोने की थाली तरसे और पातल पे जीमे भगवान


ये जीवन की अनुपम धारा पाप पुण्य फल देय सदा

 करे तपस्या श्रम साधना ये यश पल पल देय सदा 


चित्तौड़ धरा ने हर युग में पुरूष दिये है बलिदानी

 भामाशाह से शूरवीर और महा जगत के दानी


दया दान की परंपरा में नया तपस्वी आया

    वीर भूमि के आंगन जिस ने यश का दीप जलाया 


 सन्तों के सत्कार में आगे रहा उमर भर प्राणी

 जिन्हें पुकारते हम आदर से ख्याली लाल ईनाणी 


सीधा सादा धोती धारी पगड़ी लेहरी भात पहन

 मेवाड़ी जूती में फबता इस सपूत का रहन सहन 


हिम्मत मेहनत लगन लगा जिसने जी जान से काम किया

इसी पुरूष के पुण्य प्रताप से संस्थानों ने नाम किया


आये होंगे संकट भारी इस मंजिल को पाने में

 हैं साधक ये हमें बता क्या जला तू दीप जलाने में 


थोड़ा ज्यादा कष्ट सहा पर अंधियारे को भगा दिया 

लगन शील को मिले सफलता ला उजियारा बता दिया


जतन तुम्हारे कथन तुम्हारे रहे प्रेरणा स्रोत हमारे

पद चिन्हों पर चले तुम्हारे सदा रहे सौभाग्य हमारे


  रहे प्रभु की कृपा आप पर सीया राम वरदान रहे

  यश वैभव के कलश रहो तुम सदा मान सम्मान रहे


संस्कारों में पलती फलती ये सन्तान तुम्हारी 

मर्यादा के बाग में महके ये सुन्दर फुलवारी 


ले कन्चन की थाल कीर्ति तिलक करे श्रीभाल पर 

  चित्तौड़ नगर को नाज रहेगा अपने ख्याली लाल पर


इस गौरवशाली जीवन का ऊँचा मस्तक भाल रहे

लगे उमर भी तुम्हें हमारी जीवन सदियों साल रहे