Veena वीणा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-40)

 वीणा 

वीणा की गोदी में अधरों के छन्द 

आज इन्हें अधरों पर सोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 


आया मधुमास लिए कोमल सी काया

     कोयलिया कूक रही अंबुवा की डार

 कली-कली झूम रही भंवरों की गोद में 

 जैसे की नैनों में कजरे की धार 


फूलों ने फैलाई आज वो सुगन्ध 

आज सुधा सागर में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग

  होनी को अनहोनी होने दो

 

   प्रेम का पुजारी मैं पूजा की प्यास सहे

      तुम साधना स्वर हो रूप का सिंगार

 कामना में किस लय की कल्पना की भोर हूँ 

   तुम लाली संध्या हो शब्द का निखार


 यौवन में मदमाती देख ये उमंग 

आज मुझे अपनों में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो