याद-ए-इन्दिरा
दीपक नहीं हो जैसे कि पूजा के थाल में
परचम वफा का मुल्क में जिससे बुलन्द है
जिसकी वफा का मुल्क ये एहसानमन्द है
खुशबू वतनपरस्ती की जिसके जमाल में
टूटी मगर ना टूटने दिया वतन कभी
देकर लहू ना सूखने दिया चमन कभी
सांसों का तेल दे दिया बुझती मशाल में
दुनियां के हर गरीब से था प्यार जो तुम्हें
सदियों भूल ना पायेगा संसार भी तुम्हें
दुनिया की दर्दमन्द थी वो हर सवाल में
जीवन करोड़ों ने किये नाम आपके
पूरे करेंगे हम अधूरे काम आपके
अकीदत के फूल हैं यही सच्चे खयाल में