Haldeeghaatee हल्दीघाटी ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-25)

                                                                        हल्दीघाटी

शोणित धरती गन्ध गुलाबी

ये चन्दन की भांति है

मांग भरो और तिलक लगाओ

ये सिन्दूरी माटी है

शीश कटा पर झुका नहीं

रण क्षेत्र ये हल्दीघाटी है

 

इतिहास में सोने के अक्षर हैं

इसकी हर तारीफ में सुन लो

मातृभूमि की रक्षा कैसे

होती है इस गीत की सुन लो

 

मेवाड़ की मर्यादा मन्दिर की

मूरत से भी प्यारी थी

प्राण जाये पर वचन ना जाये

आन रक्त से प्यारी थी

 

सैन्य शक्ति निर्बल राणा की

मुगल फौज का पार नहीं था

थोड़े थे राजपूत बांकुरे

उनको भी हथियार नहीं था

 

व्याकुल मन मुख मंडल फीका

मातृ भाव अधरों पर थिरके

शक्ति सिंह को गले लगाने

राणा की अंखिया पथ निरखे


वंश लजाया शक्ति तूने

बनकर बैरी का बंजारा

अफसोस मिलेगा रण में तुझको

जायेगा तलवार से मारा


खाली देश खजाने सारे

दाता दीन सी आह भरे

मत निराश हो राणा देखा

पीछे भामाशाह खड़े


मेवाड़ के मालिक आन रहे

करे गर्व इतिहास सदा

करो करोड़ों खर्च खजाने

भामाशाह भरे सादा


पतझड़ में सावन आया हो

तेल दिया बुझती बाती में

स्वागत करने राणा पहुँचे

बैरी का हल्दी घाटी में


दसों दिशाएं हिली देवता

दर्शन के द्वारे आये

धरा धन्य हो गई थी

जिसने पूत जो ऐसे जन्माये


अश्व का राजा धन्य धरा पर

धूम-धाम से धीन धारे

श्वेत वक्ष पर हाथ फिराते

राणा चेतक रूप निहारे


आज परीक्षा तेरी चेतक

चंचल चपला सा तू बन जा

वीर गति पाऊँ गर रण में

दुश्मन मेरी लाश ना ले जा


छोड़ मुझे मत जाना चेतक

चाहे जो भगवान बुलाये

पावन प्रताप के चरण चूमता

चेतक नैनन नीर बहाए


एक लहर सी उठी पवन में

खनन खनन खनकी तलवारें

भाला बरछी तोप कटारी

धनन धनन तोपें ललकारे

 

 

जय एकलिंग से गूंजा अम्बर

रणफेरी ललकार उठी

गिरे गगन से पुष्प करोड़ों

जब राणा की तलवार उठी


थी वसुन्धरा सनी रक्त से

प्रलय दृश्य जो हृदय हिलाये

घोड़ों की टापों से टपके

लहू जंग का जोश दिलाये


करूँ कल्पना कर नहीं पाऊँ

सरिता के दोपाट मिले हैं

बिन बादल बरसात बिजली

धरती और आकाश मिले हैं


एक भील दस माथे काटे

भुजा भील की उड़ती जाये

लाशों के अम्बार हो गये

फिर भी दुश्मन बाज आये


मुगल सिपहसालार जंग में

बना था राणा का जो निशाना

हाथी से ऊपर था चेतक

रहा ना उसका कोई ठिकाना

 


पर नहीं बदलती भाग की रेखा

वक्त का भी साथ नहीं था

चेतक जब हाथी से उतरा

उसका अगला पाँव नहीं था


तीन पाँव पर चला बचाने

अपने मालिक की मर्यादा

वफादार था बड़ा जानवर

आज के इस इन्सान से ज्यादा


पहचानी आवाज के पीछे

जरा ठहरना मेरे दादा

शक्ति सिंह को आते देखा

बोले राणा क्या है इरादा


पाँव पकड़ कर लगा चूमने

शक्ति सिंह को यही शिकन था

उमड़ा पड़ा सावन अंखियों से

भरत राम का यही मिलन था


क्या उपमा दूं कहो जरा तुम

शब्द कहाँ से ढूँढ के लाऊँ

कितने दुर्लभ क्षण सुन्दर थे

काश में ऐसा जीवन पाऊँ


दिशा दिखाने लगी रास्ते

उस सपूत को जिधर गया वे

आन अमर हो गई अरे सुन

मेवाड़ का गौरव निखर गया रे


वचन तोड़ कर बोल ना चेतक

चला अकेला आज किधर को

धैर्य का धर सीने पर पत्थर

चूम लिया चेतक के सर को


शक्ति सिंह ने अपना घोड़ा

राणा के हाथों में थमाया

भाई तो भाई होता है

चाहे लाखों कहे पराया


तारीख बदलती चली जायेगी

जब तक ये संसार रहेगा

हल्दी घाटी तेरी गाथा

जनम-जनम जब्बार कहेगा।