Shimala samajhauta शिमला समझौता ( गंगा की लहरें )- Kavi Abdul Jabbar (GL-8)

शिमला समझौता

अभी पुरानी नहीं वो लाशें बिन अर्थी के निकल गईं

 शिमले की बर्फ बताबिन गर्मी के क्यूं पिघल गई


खून दिया हैजान भी दे दीआन पर सब कुछ वार दिया

रही लहू की एक बूंद दुश्मन को सीमा पार किया

अभी रेत से धब्बे मेरे नहीं लहू के उड़ पाये

कहते हैं की फूल खिलेगें खिले नहीं पर मुरझााये

सीमा पर लाशों की दीवारें क्यों रेती बन बिखर गईं


भूल  पाई माँ की ममता अपने लाल सिपाही को

भूल  पाई बहना अपने प्यारे सैनिक भाई को

टूटे ना आँसू बेवा के छूटी ना मेहन्दी हाथों की

चैन गया दिन में बच्चों का नींद चली गई रातों की

मांग सुहागन की वो देखो समझौते में उजड़ गई


क्यों ना उठा तूफान हवा मेंचुप क्यों गंगा-जमुना है

क्यों ना उठी आवाज जीता क्षेत्र हमारा अपना है

उठो हिमाला चुप क्यों हो कश्मीर से कन्या पार उठो

उठो शहीदोंफिर जागो चित्तौड़अरे ललकार उठो

अरेकिनारे कश्ती डूबी तूफानों से निकल गई