Vishv-Shaanti विश्व-शांति (गंगा की लहरें) - Kavi Abdul Jabbar (GL-10)

विश्व-शांति

आओ मिल करें जतन

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपनाये जमीं

अपनी सुबह और शाम


सरहदें ये क्यों पड़ी

पास फौजें क्यों पड़ी

आज तोपें क्यों अड़ी

मौत सर पे क्यों खड़ी


हिंद की है आरजू

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपना ये जमीं

अपनी सुबह और शाम


जल ना जाये ये चमन

उजड़े ना कोई कली

आयेगा ना फिर अमन

गरज तोप चल पड़ी


हिन्द की है आरजू

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपना ये जमीं

अपनी सुबह और शाम