Kashmeer कश्मीर ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-17)

                                                                             कश्मीर

बैर हुआ है क्यों हरजाई किस्मत को कश्मीर से

आओ हिलमिल दूर करें हम नफरत को कश्मीर से

प्यार बड़ा है इस गुलशन में कुदरत को कश्मीर से

 

किसकी नजर लगी गुलशन को रौनक गई बहारों से

हंसने लगे अंधेरे या रब, गायब चमक सितारों से

ठहर गया नदिया का पानी, भटकी लहर किनारों से

मंदिर-मस्जिद मौन मसीहा चिंतित है हत्यारों से


कुर्सी के लालच ने जोड़ा मजहब को कश्मीर से

आओ हिलमिल दूर करें हम नफरत को कश्मीर से 


रूठ गये हैं हससे अपने आओ इन्हें मना लें हम

सारे शिकवे गिले भुला कर इनको गले लगा लें हम

इक दूजे के दर्द बांट लें सारे भरम भुला लें हम

देश की कश्ती तूफानों से हिलमिल सभी निकालें हम 


जाने ना दो लड़ते-लड़ाते जन्नत को कश्मीर से

                   आओ हिलमिल दूर करें हम नफरत को कश्मीर से