Vande maataram वन्दे मातरम् (गंगा की लहरें ) - Kavi Abdul Jabbar (GL-6)

 

वन्दे मातरम् 

नई चेतना, नई मशालें, नई रोशनी जिन्दाबाद

मेरे वतन के जिन्दा लोगों, नई जिन्दगी जिन्दाबाद

जुल्म के निकले यूँ ही जनाजे, नई बन्दगी जिन्दाबाद

बोलो वन्दे मातरम्।


जिन्हें अंधेरे छेड़ ना पाये, उजियारों ने लूट लिया

अमर बेल बन गये थे रक्षक, निर्दोषी का खून पिया

घरवालों ने घरवालों से गैरों सा व्यवहार किया

आजादी में भारतवासी, कैदी और लाचार जिया

फिर भी रहे हौंसले कायम, रही बुलन्दी जिन्दाबाद

बोलो वन्दे मातरम्


जगत जानता है भारत में, प्रजातन्त्र है, खेल नहीं

गौतम, गाँधी की धरती का, जुल्मों-सितम से मेल नहीं

हम गरीब अनपढ़ हैं लेकिन, बुरेभले का भान हमें लोग हमें

पहचान ना पाये पर उनकी पहचान हमें

दुःख-दर्दो के बीच से निकली हुई हर खुशी जिन्दाबाद

बोलो वन्दे मातरम्।


भरम-भुलावा छीन ले गया कोमल कलियों की काया

लुक-छिपकर जो फूल बन गई उस पर पतझड़ का साया

पतझड़, सुन लो, अब ना सहेगा, और ये सावन बदनामी

अब ना चलेगी इस गुलशन में और खिंजा की मनमानी

बदल गया है माली अब तो रहो हर कली जिन्दाबाद

बोलो वन्दे मातरम्।


ऐसी एकता देश में पहले देखी नहीं कभी जानी

मजहब की दीवारें बोली पहले सब हिन्दुस्तानी

सोने वालों जागते रहना गैरों की रखवाली है

क्या बदलेंगे लोग वो जिनकी जनम से नीयत काली है

गाँधीवादी लोगों जग में रहो हर घड़ी जिन्दाबाद

बोलो वन्दे मातरम्