Showing posts with label Geet. Show all posts
Showing posts with label Geet. Show all posts

Sahaara सहारा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-45)

 सहारा 

मिल जाये तेरी नर्गिसी आँखों का सहारा 

तो जिंदगी की नाव को मिल जाये किनारा

 महबूब मेरे डालो अगर मुझ पे एक नज़र

मेरे नसीब का भी चमक जाए सितारा 


हसरत है तेरे पहलू में ये उम्र गुजारूं

 सावन की घटाओं सी तेरी जुल्फ सवारूं

 कदमों पे तेरे रख दूँ जमाने की मैं दौलत

ये उम्र मेरी सारी तेरे हुस्न पे वारूं


 मेरी वफा से यार रहे तुम जो बेखबर

 ऐसा न हो कि यार भटक जाए तुम्हारा 


लाखों हसीन जिंदगी की राहों में आये 

लेकिन वो तुम थे एक निगाहों में समाये

तेरे शबाब बेमिसाल को मेरे हमदम 

कैसे मैं देख पाता पनाहों में पराये 

दिवानगी में शाम हुई है कहाँ सहर 

हर साँस सिर्फ नाम लिये जाए तुम्हारा 


 सागर के साथ रहती है दिल सी हर लहर

पूजा है तुम्हें प्यार से पलकों ने इस कदर

ऐसी दिवानगी लिए घूमूं मैं दर-बदर

मैं नाम खुदा का लूँ तो आ जाये तुम्हारा


मेरी वफा से यार रहे तुम जो बेखबर

 ऐसा न हो कि यार भटक जाए तुम्हारा

Saaksharata geet साक्षरता गीत (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-44)

 साक्षरता गीत 

साक्षर हो सारा देश हमारा यही प्रयास 

आये हमारी ज़िन्दगी में ज्ञान का प्रकाश


  अनपढ़ की ज़िन्दगी में बहारें नहीं आती 

पढ़ लो तो ज़िन्दगी से बहारें नहीं जाती

  सूरज ने अंधेरे को किया है सदा निराश 

  आये हमारी ज़िन्दगी में ज्ञान का प्रकाश


 मेहनत लगन से खूब पढ़े और पढ़ाएं 

दुनिया में अपने देश का सम्मान बढ़ाएं

 मंदिर की मूर्ति की तरह ज्ञान को तराश 

आये हमारी ज़िन्दगी में ज्ञान का प्रकाश 


पोथी कलम ले हाथ में आखर की ले मशाल 

विद्या के धन से आदमी ने कर दिया कमाल

   मन के वीरान खेत में फूले फले पलाश 

 आये हमारी ज़िन्दगी में ज्ञान का प्रकाश


मेहनतकशों की टोलियां पढ़ने को चल पड़े

 बच्चों के साथ नारियाँ पढ़ने को चल पड़े 

करते रहो जतन मनन ना हो कोई निराश 

आये हमारी जिन्दगी में ज्ञान का प्रकाश 


तम के तमाम वार यहां होंगे बेअसर 

सूरज ने बिखेरी है किरण गाँव घर डगर

 सबने कमर कसी करें अज्ञान का विनाश 

आये हमारी ज़िन्दगी में ज्ञान का प्रकाश 

Pahachaan पहचान (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-43)

    पहचान 

           ये गाना गाऐ हर इन्सान कराए पढ़ने की पहचान 

        दूर करेगा दुनिया भर से अंधियारा अज्ञान 


    गाँव गली घर आंगन इसने ये आवाज़ लगाई

      सदा आदमी रहा अधूरा बिना शिक्षा के भाई 

     जागो रे मज़दूर किसानों लो फिर से अंगड़ाई 

    जीवन का आनन्द उठाने करलो खूब पढ़ाई


              जरा सा इस पर धर लो ध्यान

             तो गुज़रे उमर बड़ी आसान 

    मुरझाए चेहरों पर फिर से आ जाए मुस्कान

     ये गाना गाऐ हर इन्सान कराए पढ़ने की पहचान 


      शहर सबा फिर देश संवारो और संवारो दुनिया

          भाईचारा उमड़ पड़े हर झोली में हो खुशियाँ

       हरे भरे हों खेत हमारे आ जाए खुशहाली 

     मनवा गाये गीत खुशी के बोले कोयल काली

    सूरज आशाओं का निकले

      भूले मानवता ग़म पिछले 

भागे भूख गरीबी सब के पूरे हों अरमान 

   ये गाना गाऐ हर इन्सान कराए पढ़ने की पहचान 


  आजादी के बाद भी घायल है भारत की नारी

               दहेज का लालच दिखा रहा है अपनी कारगुजारी

              पढ़ जाये परिवार जो घर में पढ़ी लिखी हो नारी 

  ताकत बन जाये नारी ना रहे कोई लाचारी


 जागे शक्ति बन कर नारी

 वरना दुनिया है दो धारी 

  पढ़-लिख जाए तो हो जाए नारी का उत्थान

        ये गाना गाए हर इन्सान कराए पढ़ने की पहचान 


  जात पात और धरम करम से देश बड़ा है भाई 

सत्य अहिंसा दयादान संदेश बड़ा है भाई

  अपने हाथों मानव का सुन्दर संसार बनाना 

 हिंसा के हाथों से ये सुन्दर संसार बचाना


 देखो चमन जले ना अपना

 देखो वतन लुटे ना अपना 

दुनिया को सुन्दर लगता है अपना हिन्दुस्तान 

ये गाना गाए हर इन्सान कराए पढ़ने की पहचान 

Gyaan ka deep jalaane ko ज्ञान का दीप जलाने को (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-42)

 ज्ञान का दीप जलाने को

       गाँव गली घर आंगन-आंगन ज्ञान का शंख बजाने को 

        हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 


        चौपालों पर चर्चा है पढ़ने की और पढ़ाने की

              अनपढ़ लोगों के हाथों में पोथी कलम थमाने की

            बढ़ने की चाहत जागी है नारी के मन मंदिर में

                 सीता सलमा साथ चली लो पढ़ने ज्ञान के मंदिर में 


              पूरब की किरणों ने फिर से रोशन किया ज़माने को

                   हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 


           भला पढ़ाने वाले का और पढ़ने वाले का भी भला 

       इक बंजारा गीत सुनाता देता ये संदेश चला

       भूख गरीबी से छुटकारा अक्षर ज्ञान करायेगा

           हमको अपने अधिकारों की ये पहचान करायेगा 


        हमें बनानी है फिर राहें जीवन सफल बनाने को 

          हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 

Lahar लहर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-41)

 लहर 

जनता के राज की लहर है गाँव-गाँव में

 उमंग जोश की ख़बर है गाँव-गाँव में

 गाँवों में लोकतंत्र की गहरी हुई जड़ें 

पंचों के राज का असर हैं गाँव-गाँव में 


  पगडण्डीयाँ घटी सड़क से गाँव जुड़ गये

   देहात की तरफ खुशी के पाँव मुड़ गये

     जवाहर रोज़गार का जब से दिया जला 

   बेईमान और बिचौलियों के होश उड़ गये

       कल्याणकारी काफिले चौपाल पे जाकर 

देते हैं हाथों-हाथ हुनर गाँव-गाँव में

 

इंजन बनाने लग गये लुहार गाँव के

 पीछे नहीं किसी से भी सुधार गाँव के

 कुम्हार ने बनाये हैं बर्तन वो बेमिसाल  

हीरे तराशने लगे सुनार गाँव के 

रथ विकास का चला गती को तेज़ कर 

आशाओं की उजली पहर है गाँव-गाँव में 


पहले से ज्यादा बहन बेटियों को हक मिले

 पिछड़े को पहले काम के चले हैं सिलसिले 

किस्मत संवरने लग गई है अब गरीब की

 बसने लगी है बस्तियाँ बेघर को घर मिले

 पीने को पानी बस्तियों को रोशनी मिली 

सतरंगी शाम और सहर है गाँव-गाँव में 


शिक्षा का गाँव-गाँव में फैला है वो जाल

 जिसमें तरक्की पा रहे हमारे नौनिहाल 

अनपढ़ ने बाद काम के पढ़ना शुरू किया

 गीता का पाठ कर के प्रौढ़ भी हुए निहाल

 ताकील तो तमाम तरक्की का नाम है

 कलम किताब का असर है गाँव-गाँव में 


  गाँवों में भाईचारे का सूरज चमक रहा

    महान देश की महान है परम्परा 

 लाई है रंग खेत में मेहनत किसान की 

 सोना उगल रही है हमारी वसुंधरा

           आने लगी हरियाली रेगिस्तान में भी अब 

   वो लहराती आ रही है नहर गाँव-गाँव में

Veena वीणा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-40)

 वीणा 

वीणा की गोदी में अधरों के छन्द 

आज इन्हें अधरों पर सोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 


आया मधुमास लिए कोमल सी काया

     कोयलिया कूक रही अंबुवा की डार

 कली-कली झूम रही भंवरों की गोद में 

 जैसे की नैनों में कजरे की धार 


फूलों ने फैलाई आज वो सुगन्ध 

आज सुधा सागर में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग

  होनी को अनहोनी होने दो

 

   प्रेम का पुजारी मैं पूजा की प्यास सहे

      तुम साधना स्वर हो रूप का सिंगार

 कामना में किस लय की कल्पना की भोर हूँ 

   तुम लाली संध्या हो शब्द का निखार


 यौवन में मदमाती देख ये उमंग 

आज मुझे अपनों में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 

Jindagee ke chalan जिन्दगी के चलन (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-39)

 जिन्दगी के चलन 

राज़ एक मैं कहूँ, ऐ हम वतन

 गर है तू हिम्मती, है जो तुझमें लगन 

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन

 फिर करेगा तुझे सारा जग ये नमन 


आहे तू क्यों भरे, हाथ दो जो तेरे 

जीते जी वो भरे मुश्किलों से डरे

 बाँध ले तू कमर मुश्किलों से ना डर 

 होगी फूलों सजी ये कंटीली डगर 


  होगा गम से कभी फिर खुशी का मिलन 

  मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 


ज़िन्दगी की पहर है खुदा की मेहर

 बुलबुला नीर का आती जाती लहर 

ज़िन्दगी फूल भी ज़िन्दगी शूल भी 

 सर चढ़ी है कभी ये चरण धूल भी 


खिल उठेगा कभी तेरे मन का चमन 

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 


वक्त क्यों कर रूके, रूक गये जो रूके

उठ ना पाये कभी झुक गये जो झुके

वक्त को थाम ले हाथ को काम दे

ज़िन्दगी को अरे, ज़िन्दगी नाम दे


हो ना मायूस तू और कर फिर जतन

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन


 आखिरी बात सुन मेरे जज़्बात सुन

    बुझे दिलों की लुटी जग में बारात सुन

      हौंसलों के सिले जिन्दगी में मिले 

  हौंसलों से सदा है विराने खिले 


हो ना सच ये अगर छोड़ दूंगा कलम

 मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 

Naaree नारी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-38)

 नारी 

   ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

    फिर समाज ना करे उपेक्षा तेरी दुःख भारी सुन ले 


     एक कली तू नाज की पाली बाबुल की फुलवारी में

     पड़ी जमाने की नज़रें क्या गुज़री तुम बेचारी पे

     जोड़े रिश्ते नाते सारे बाली उम्र कुंवारी में

     दीप जलाए लाज की खातिर धाकी हर लाचारी में

     नमक मसाले याद रहे सब भूली दुनियादारी में


   फिर तेरा सम्मान नहीं है 

   ये नर भी अन्जान नहीं है 


      इस सम्मान का हर पहले खंजर है दो धारी सुन ले 

       ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुनले

 अनजाने ने साथी को जीवन अर्पण तूने क्यूँ कर डाला

        जोश जवानी में सुधबुध भूली जीवन कर दी ज्वाला 


भरी वासना की नज़रों ने बेसबरी से मथ डाला

 अनचाहे ही बच्चों की मां बन धरती का बोझ बढ़ा डाला 

कोई नंगा भूखा प्यासा रोगी या कोई और ख़राबी है 

और निराशा फैले जब नंगों का बाप शराबी है 


अबला समझा कहर किया

 अमृत के बदले जहर दिया 


         हक है तेरा तू छीन के ले ना बन अब बाज़ारी सुन ले 

ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

दुर्योधन ना हो फिर पैदा के चीर तेरा खिंचवाया है

  लाख सहे अपमान मगर धीरज धन तूने पाया है 


अधिकार तेरा तू छीन के ले सदियों तुझको तरसाया है

 तूफान उठे तो उठने दे तुझ पर गंगा का साया है 

फैशन पर परवाज़ ना कर संघर्ष भरा युग आया है

                                            भाग्यवान है के तूने भारत का गौरव पाया है 


                                                       मत धरती का बोझ बढ़ा 

                                                      ये देश तो पहले से ही बड़ा 


                                      मन मानी रोक ज़रा नर की आई बारी सुन ले 

                                     ए भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले 

Taaleem तालीम (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-37)

 


तालीम 

तालीम हमारे भारत की तस्वीर बदल देगी

हासिल कर लो ये सबकी तकदीर बदल देगी


शिक्षा साधक अमर हो गये तुलसी, सूर, कबीरा

ज्ञान की गंगा में डुबकी ले अमर हो गई मीरा,


शिक्षा  साथी  हाथों की  लकीर  बदल देगी

हासिल कर  लो  ये सबकी  तकदीर बदल देगी  


पढ़े-लिखों ने गिन डाले हैं नभ के चांद सितारे

सागर  की  गहराई नापी  चांद  पे चरन उतारे


कलम करम की आंख का खारा नीर बदल देगी

हासिल  कर  लो ये  सबकी तकदीर बदल देगी


आओ गांव गली घर आँगन द्वार-द्वार पर जाएँ

शिक्षा के सूरज की किरणें जन-जन तक पहुंचाएं


ज्ञान  की  गरिमा  जीने की  तासीर  बदल देगी

हासिल कर  लो ये  सबकी  तकदीर बदल देगी


एक  को  एक  पढ़ाएं  जैसे दीप  से दीप  जलाएं,

साक्षरता  के महामिशन  में  तन मन से जुट जाएं


जब्बार, पढ़ाई  जन  मन की  हर  पीर  बदल देगी

हासिल  कर  लो ये  सबकी  तकदीर बदल  देगी

Maan-baap माँ-बाप (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-36)

 माँ-बाप 

रूठे तो रूठ जायें भले भाग किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


आँचल में सदा माँ के हमें स्वर्ग मिला है

 बचपन से जवानी का हंसी फूल खिला है 

माँ के बगैर ज़िन्दगी वीरान किला है


 मेरे ख्याल में यह जज़्बात सभी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


 ये प्यार वो है जिसको ख़रीदा नहीं जाता

 ममता के मोल को कभी आंका नहीं जाता 

वो खुश नसीब साया जो माँ-बाप का पाता


 मेरे खुदा ना हो कोई मोहताज किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


जिन पर गज़ब हुआ है उसे प्यार दीजिये

       मुरझाई जिंदगी को फिर बहार दीजिये 

 यतीम को समाज में सत्कार दीजिये 


वरना ये भूख देश को सौगात नहीं दे 

दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


गुज़री नहीं कभी खुशी जिनके करीब से

 हमने किये सुलूक भी जिनसे अजीब से 

होता खुदा गरीबी में ख़फा गरीब से


 औलाद वालों तुम भी तो माँ-बाप किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 

Paigaam पैगाम (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-35)

          पैगाम 

मेरे देश के हर जवान को गीत मेरे पैगाम करे

 जब तक देश में रहे गरीबी न ही कोई आराम करे 

मेहनतकश निर्बल निर्धन सब जागें मन से काम करें 


 सब खेतों का रंग बसन्ती हो सरसों के दानों से

 मेहनत से मोती उपजाये हम खेतों खलिहानों से 


देश बने केसर की क्यारी 

पूरी हो आशाएँ सारी 


खुशहाली उस देश में होगी जो खेती संग्राम करे

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


सब को साथ लिए चल प्यारे सबका साथ निभाता चल

मंज़िल खुद चल कर आयेगी सब से हाथ मिलाता चल


पौंछ ले आँसू हर निर्धन के

दीप चले घर-घर निर्धन के


प्रजातंत्र के इस भारत की जग में रोशन शाम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


   प्राण जाये पर उजड़ ना पाये कोई कली इस गुलशन की

      हर सरहद पर आँख बुरी है इस धरती पर दुश्मन की 


कोई छुपा गद्दार नहीं हो 

जिसको हम से प्यार नहीं हो


ऐसे दुश्मन की साजिश से खबरदार हर आम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


Bachche hindustaan ke बच्चे हिन्दुस्तान के (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-34)

       बच्चे हिन्दुस्तान के 

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के

    सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


जग से न्यारे

जान से प्यारे

इस सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऊँचे-ऊँचे पर्वत जिस की नदियां गहरी बलखाती हैं

 घन घोर घटा चंचल चपला जब सावन में मदमाती है

 सनन-सनन पुरवा चलती अकुले जब संध्या सिन्दूरी

 चटके कलियां चहके पंछी मधुमास महकता अंगूरी

 सुन कृष्ण की बंसी के पीछे गौचर जब गांव में चलते हैं

 क्यों भोर एक प्रतीक्षा के कुटिया में दीपक जलते हैं 


उसी सुहानी संध्या में

सपनों की सुन्दर संज्ञा में

दृश्य दिखाई देंगे तुमको

 सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


प्रथम पाठ हो भक्ति देश की, दूजे में मानव सेवा

तीजे में हो लाज तिरंगा, चौथे में मेहनत रेखा



परमेश्वर जानो पंचम में, छ: है जग में छाये रहना

सात सहारा हो निर्धन का, आठ में अनुशासन रखना

नौ में नायक बनो देश के, दस दुश्मन को टोह रखना

ये गुण जिस बालक में हो तो उस बालक का क्या कहना


मेहनत से कोई दूर नहीं है

फिर बालक मजबूर नहीं है

ये आदर्श हमारे अपने


सुन सच्चे हिन्दुस्तान के

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऐ भारत के लाड़ लाड़लों तुमको ये जीवन अर्पण

 तुम्हीं देश के भाग्य विधाता नवभारत हो दर्पण

 तुम्हीं में गाँधी, नेहरू, शेखर, भगत हैं लाल बहादुर है 

तुम्हीं में बैठी वो इन्दिरा, माणक सा वीर बहादुर है 


मुझको ये मालूम है बच्चों तुममे नंगे भूखे हैं

खून से सींचेंगे हम तुमको चाहे सावन सूखे हैं

 इस विधान को बदल के रख दें

 बच्चे हिन्दुस्तान के। 


Chaand kee sair चाँद की सैर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-33)

 चाँद की सैर 

ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन

 आज उदूंगा गगन में भी 

देखना मेरी छत से तुम

 दाल के दाने दूँ तुझको दे दो पंख तेरे मुझको

 मंगल को आकाश में जाऊँ लोटूं धरती पे बुध की 

सोने के बनवा कर दूंगा

 पंख तेरे जो कर दूं गुम

 ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन 

रात को रोज़ कहे नानी चाँद पे परियों की रानी

 गाड़ तिरंगा चाँद पे आऊँ मैं बालक हिन्दुस्तानी 

आर्य भट्ट से मिल आऊँगा 

पूछंगा हो कैसे तुम

 ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन 

ना मानूं मैं आफत को लगा के सारी ताकत को

 धरती के हर चक्कर पर मैं नयन करूँगा भारत को 

सपने सब साकार करूँगा 

आज लगी है ऐसी धुन 

ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन । 

Karmayogi कर्मयोगी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-32)

 कर्मयोगी

किस्मत किसने खोलके देखी, किसने देखा भाग्य विधान

कब धनवान बने निर्धन और निर्धन बन जाये धनवान 


कब किसके घर चावल फुली पके किसी के घर पकवान

सोने की थाली तरसे और पातल पे जीमे भगवान


ये जीवन की अनुपम धारा पाप पुण्य फल देय सदा

 करे तपस्या श्रम साधना ये यश पल पल देय सदा 


चित्तौड़ धरा ने हर युग में पुरूष दिये है बलिदानी

 भामाशाह से शूरवीर और महा जगत के दानी


दया दान की परंपरा में नया तपस्वी आया

    वीर भूमि के आंगन जिस ने यश का दीप जलाया 


 सन्तों के सत्कार में आगे रहा उमर भर प्राणी

 जिन्हें पुकारते हम आदर से ख्याली लाल ईनाणी 


सीधा सादा धोती धारी पगड़ी लेहरी भात पहन

 मेवाड़ी जूती में फबता इस सपूत का रहन सहन 


हिम्मत मेहनत लगन लगा जिसने जी जान से काम किया

इसी पुरूष के पुण्य प्रताप से संस्थानों ने नाम किया


आये होंगे संकट भारी इस मंजिल को पाने में

 हैं साधक ये हमें बता क्या जला तू दीप जलाने में 


थोड़ा ज्यादा कष्ट सहा पर अंधियारे को भगा दिया 

लगन शील को मिले सफलता ला उजियारा बता दिया


जतन तुम्हारे कथन तुम्हारे रहे प्रेरणा स्रोत हमारे

पद चिन्हों पर चले तुम्हारे सदा रहे सौभाग्य हमारे


  रहे प्रभु की कृपा आप पर सीया राम वरदान रहे

  यश वैभव के कलश रहो तुम सदा मान सम्मान रहे


संस्कारों में पलती फलती ये सन्तान तुम्हारी 

मर्यादा के बाग में महके ये सुन्दर फुलवारी 


ले कन्चन की थाल कीर्ति तिलक करे श्रीभाल पर 

  चित्तौड़ नगर को नाज रहेगा अपने ख्याली लाल पर


इस गौरवशाली जीवन का ऊँचा मस्तक भाल रहे

लगे उमर भी तुम्हें हमारी जीवन सदियों साल रहे


Karmayogi Kulishji कर्मयोगी कुलिशजी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-31)

  कर्मयोगी कुलिशजी

कुलिश के बिन कलम का कारवां इस हाल में 

दीपक नहीं हो जैसे कि पूजा के थाल में 


 धरती का लाल आज सितारों में जा बसा 

 फलक के फरिश्तों की कतारों में जा बसा 

दीपक गया वो देवता की देख भाल में 


साथी सखा समाज का वो सारथी रहा

 शब्दों के मोतियों का सदा पारखी रहा 

 अहिंसा का दूत था मेरे भारत विशाल में 


साधक वो साधना का सरोवर थमा गया

 सदियों का प्यार एक जनम में ही पा गया 

लिपटा है लाडला वो तिरंग की शाल में 


ऊँचे खरे ख्याल का खुद्दार आदमी

   वो गुल गुलिस्तां हो गया गुलजार आदमी

लाऊँ कहाँ से ढूंढ के ऐसी मिसाल मैं 


 होना फरेब फर्ज का आला मकाम हो 

जालिम हो बेनकाब खुला इन्तकाम हो

 इन्साफ का हामी वो सियासत की चाल में 


रोशन रहेंगी राहें तुम्हारे असुल में

माहौल महका-महका अकीदत के फूल से

मर्यादा मौन मिल गई चन्दन गुलाल में


 सोडा के पूत पर हमेशा नाज रहेगा

 दुनिया में वो इन्साफ की आवाज रहेगा

   तस्वीर देखते हैं हम उनकी गुलाब में 


ऐ बागबान बहार पे तेरी नजर रहे

 दुःख सुख में वक्त-वक्त पे सबकी खबर रहे 

साया रहे तेरा सदा समय की चाल में 


याद-ए-चराग को कभी बुझने ना देगें हम 

परचम कुलिश के मान का झुकने न देगें हम

  जब्बार, जन सैलाब था जिसके विसाल में । 

Aachaary shree tulasee आचार्य श्री तुलसी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-30)

 आचार्य श्री तुलसी

आज अहिंसा आलोकित अणुव्रत के आह्वान से

धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से

 आदर्शों के दीप जले अमृत महोत्सव की शान से 

 आप के आदर्शों से बदला हमने सोच ख्यालों को

  पाप की आंधी बुझा ना पाई पुण्य से जली मशालों को

  आपने सुलझा दिये देश के कई जटिल सवाल को

 पंजाब को दी दिशा आपने राजीव संत लोंगोवाल को

  ऐसे संतों से जायेगी हिंसा हिन्दुस्तान से 

     धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से 


पाप के पापीपन की पीड़ा पीर बनी हर द्वारे की

हिंसा थी हर मोड़ पे हरदम कौन सुने दुखियारे की

उठी लाडनू की धरती से एक किरण उजियारे की

पूनम हो गई किरण आज वो रात गई अंधियारे की

रोशन हो गई मानवता तुलसी से संत महान से

धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से

  जीवन अर्पण सभी हमारे जब भी आप पुकारेंगे 

  सभी अहिंसा के पथ चलकर सारी उम्र गुजारेंगे 

हे युग दृष्टा ! हे युग प्राणी ! हमको और संवारिये

 कठिन तपस्या के पचासवें साल में आप पधारिये 

मानवता को मान मिले हिंसा जाये जहान से

 धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से 

Meera मीरा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-29)

 मीरा 

    मीरा मन हारी बावरी गिरवर गिरधारी से 

    क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


 क्या धरा है हाथी घोड़े सुंदर महलों में

  क्या धरा है सोने चांदी सुंदर गहनों में

     सब बौने मेरे मंदिर की इस चार दीवारी से 

    क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


   फलते खिलते बाग बगीचे ये लहराते खेत

   बैसाखी भण्डार भरे सावन ये बरसे मेघ

    पर फूल चल कर आते हैं बृज की फुलवारी से

       क्या लेना देना राणा जी अब इस दुनियादारी से 


  चंवर ढुलाते नौकर चाकर बैठे सब सरदार

  फौज फांटे तोप तमन्चे हाथों में तलवार 

  पर बंसी भारी तोप तमन्चों की चिंगारी से

   क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


   चलो चलें बृज करें चाकरी मुरलीधर के द्वार 

छोड़ो राजा राज सिंहासन हैं सारे बेकार

   जनम जनम का साथ करो जी कृष्ण मुरारी से 

 क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


  हरि हरे हर पीर तुम्हारी दुःख देने वाले 

  अमृत बरसे तुम पर मुझको विष देने वाले

   विनती यही है मेरी इस सुदर्शनधारी से

     क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


सूरज चांद सितारे अपने जलथल अपरंपार

 क्या धरती मेवाड़ मेड़ता अपना घर संसार 

जब्बार अमर होते हैं कुल ऐसी कुलनारी से

 क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 

Chittor darshan चित्तौड़ दर्शन (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-28)

 

चित्तौड़ दर्शन

जानी और पहचानी है

हम क्या करें तारीफ यहां की

जग में ऊँची कहानी है

चेतक पर राणा की मूरत

भोली एक बापू की सूरत

मीरा की बलिहारी यहाँ है

नेहरू की फुलवारी है

हम क्या करें तारीफ यहां की

जग में ऊँची कहानी है

चारों तरफ है पानी पानी

पानी है पर दो पुलिया पुरानी

पुलिया नीचे झूमे गोरी

धोये चुंदड़ी धानी है

काशी अजमेर क्यूं जाएं

सर क्यूं ना अपना यही झुकाएं

नीचे दरगाह है मत वाली

ऊपर चण्डी काली है

शीतल जल गौमुख का झरना

इठलाते बल खा कर गिरना

जैसे घाघर को छलकाती

बूंदे भरती पानी है

रेलों कारों ने घेरा है

देश विदेशियों का डेरा है

देख के कीर्ति स्तम्भ को हमारे

करते सब हैरानी है

Chittor hamara चित्तौड़ हमारा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-27)

                                                                       चित्तौड़ हमारा

मान का सम्मान का

आन अपनी शान का

ये हम सब को प्यारा

चित्तौड़ शहर हमारा

कंकर पत्थर मोती इसके अमृत बहती नदियाँ

इस मिट्टी से तिलक लगाते अपनी बीती सदियां

हर पर्वत की छाँव तले

खेत हमारे खूब फले

चन्दन वन है सारा

चित्तौड़ शहर हमारा

मीरा के मीठे भजनों से होता यहाँ सवेरा

जन जीवन को धूप छांव दे सूरज करता फेरा

जब सिंदूरी शाम ढले

जल मंदिर में दीप जले

लगता स्वर्ग ये सारा

चित्तौड़ शहर प्यारा

पन्ना का बलिदान निखारे इसकी गौरव

गाथा फिर प्रताप के शौर्य ने इसका कर दिया ऊँचा माथा

भक्ति शक्ति की ये पहचान

इस को वीरों का वरदान

इससे दुश्मन हारा

चित्तौड़ शहर हमारा

भोले भाले नर नारी सब मीठी बोली बोले

मेवाड़ी भाषा से भाई जैसे मिसरी घोले

प्रीत से बोले मीत उसी के

नाचे गाये गीत खुशी के

झूमें उपवन सारा

चित्तौड़ शहर हमारा

ये चमकीले काले पत्थर इसकी शान संवारे

फौलादी सिमेन्ट सारे ये उद्योग हमारे

कामगार इसके जागे

नव निर्माण में ये आगे

आखिर बना सहारा

चित्तौड़ शहर हमारा