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Veena वीणा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-40)

 वीणा 

वीणा की गोदी में अधरों के छन्द 

आज इन्हें अधरों पर सोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 


आया मधुमास लिए कोमल सी काया

     कोयलिया कूक रही अंबुवा की डार

 कली-कली झूम रही भंवरों की गोद में 

 जैसे की नैनों में कजरे की धार 


फूलों ने फैलाई आज वो सुगन्ध 

आज सुधा सागर में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग

  होनी को अनहोनी होने दो

 

   प्रेम का पुजारी मैं पूजा की प्यास सहे

      तुम साधना स्वर हो रूप का सिंगार

 कामना में किस लय की कल्पना की भोर हूँ 

   तुम लाली संध्या हो शब्द का निखार


 यौवन में मदमाती देख ये उमंग 

आज मुझे अपनों में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 

Jindagee ke chalan जिन्दगी के चलन (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-39)

 जिन्दगी के चलन 

राज़ एक मैं कहूँ, ऐ हम वतन

 गर है तू हिम्मती, है जो तुझमें लगन 

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन

 फिर करेगा तुझे सारा जग ये नमन 


आहे तू क्यों भरे, हाथ दो जो तेरे 

जीते जी वो भरे मुश्किलों से डरे

 बाँध ले तू कमर मुश्किलों से ना डर 

 होगी फूलों सजी ये कंटीली डगर 


  होगा गम से कभी फिर खुशी का मिलन 

  मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 


ज़िन्दगी की पहर है खुदा की मेहर

 बुलबुला नीर का आती जाती लहर 

ज़िन्दगी फूल भी ज़िन्दगी शूल भी 

 सर चढ़ी है कभी ये चरण धूल भी 


खिल उठेगा कभी तेरे मन का चमन 

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 


वक्त क्यों कर रूके, रूक गये जो रूके

उठ ना पाये कभी झुक गये जो झुके

वक्त को थाम ले हाथ को काम दे

ज़िन्दगी को अरे, ज़िन्दगी नाम दे


हो ना मायूस तू और कर फिर जतन

मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन


 आखिरी बात सुन मेरे जज़्बात सुन

    बुझे दिलों की लुटी जग में बारात सुन

      हौंसलों के सिले जिन्दगी में मिले 

  हौंसलों से सदा है विराने खिले 


हो ना सच ये अगर छोड़ दूंगा कलम

 मोड़ सकता है तू ज़िन्दगी के चलन 

Naaree नारी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-38)

 नारी 

   ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

    फिर समाज ना करे उपेक्षा तेरी दुःख भारी सुन ले 


     एक कली तू नाज की पाली बाबुल की फुलवारी में

     पड़ी जमाने की नज़रें क्या गुज़री तुम बेचारी पे

     जोड़े रिश्ते नाते सारे बाली उम्र कुंवारी में

     दीप जलाए लाज की खातिर धाकी हर लाचारी में

     नमक मसाले याद रहे सब भूली दुनियादारी में


   फिर तेरा सम्मान नहीं है 

   ये नर भी अन्जान नहीं है 


      इस सम्मान का हर पहले खंजर है दो धारी सुन ले 

       ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुनले

 अनजाने ने साथी को जीवन अर्पण तूने क्यूँ कर डाला

        जोश जवानी में सुधबुध भूली जीवन कर दी ज्वाला 


भरी वासना की नज़रों ने बेसबरी से मथ डाला

 अनचाहे ही बच्चों की मां बन धरती का बोझ बढ़ा डाला 

कोई नंगा भूखा प्यासा रोगी या कोई और ख़राबी है 

और निराशा फैले जब नंगों का बाप शराबी है 


अबला समझा कहर किया

 अमृत के बदले जहर दिया 


         हक है तेरा तू छीन के ले ना बन अब बाज़ारी सुन ले 

ऐ भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले

दुर्योधन ना हो फिर पैदा के चीर तेरा खिंचवाया है

  लाख सहे अपमान मगर धीरज धन तूने पाया है 


अधिकार तेरा तू छीन के ले सदियों तुझको तरसाया है

 तूफान उठे तो उठने दे तुझ पर गंगा का साया है 

फैशन पर परवाज़ ना कर संघर्ष भरा युग आया है

                                            भाग्यवान है के तूने भारत का गौरव पाया है 


                                                       मत धरती का बोझ बढ़ा 

                                                      ये देश तो पहले से ही बड़ा 


                                      मन मानी रोक ज़रा नर की आई बारी सुन ले 

                                     ए भारत की नारी सुन ले सुल्ताना सीता सब सुन ले 

Taaleem तालीम (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-37)

 


तालीम 

तालीम हमारे भारत की तस्वीर बदल देगी

हासिल कर लो ये सबकी तकदीर बदल देगी


शिक्षा साधक अमर हो गये तुलसी, सूर, कबीरा

ज्ञान की गंगा में डुबकी ले अमर हो गई मीरा,


शिक्षा  साथी  हाथों की  लकीर  बदल देगी

हासिल कर  लो  ये सबकी  तकदीर बदल देगी  


पढ़े-लिखों ने गिन डाले हैं नभ के चांद सितारे

सागर  की  गहराई नापी  चांद  पे चरन उतारे


कलम करम की आंख का खारा नीर बदल देगी

हासिल  कर  लो ये  सबकी तकदीर बदल देगी


आओ गांव गली घर आँगन द्वार-द्वार पर जाएँ

शिक्षा के सूरज की किरणें जन-जन तक पहुंचाएं


ज्ञान  की  गरिमा  जीने की  तासीर  बदल देगी

हासिल कर  लो ये  सबकी  तकदीर बदल देगी


एक  को  एक  पढ़ाएं  जैसे दीप  से दीप  जलाएं,

साक्षरता  के महामिशन  में  तन मन से जुट जाएं


जब्बार, पढ़ाई  जन  मन की  हर  पीर  बदल देगी

हासिल  कर  लो ये  सबकी  तकदीर बदल  देगी

Maan-baap माँ-बाप (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-36)

 माँ-बाप 

रूठे तो रूठ जायें भले भाग किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


आँचल में सदा माँ के हमें स्वर्ग मिला है

 बचपन से जवानी का हंसी फूल खिला है 

माँ के बगैर ज़िन्दगी वीरान किला है


 मेरे ख्याल में यह जज़्बात सभी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


 ये प्यार वो है जिसको ख़रीदा नहीं जाता

 ममता के मोल को कभी आंका नहीं जाता 

वो खुश नसीब साया जो माँ-बाप का पाता


 मेरे खुदा ना हो कोई मोहताज किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


जिन पर गज़ब हुआ है उसे प्यार दीजिये

       मुरझाई जिंदगी को फिर बहार दीजिये 

 यतीम को समाज में सत्कार दीजिये 


वरना ये भूख देश को सौगात नहीं दे 

दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


गुज़री नहीं कभी खुशी जिनके करीब से

 हमने किये सुलूक भी जिनसे अजीब से 

होता खुदा गरीबी में ख़फा गरीब से


 औलाद वालों तुम भी तो माँ-बाप किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 

Paigaam पैगाम (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-35)

          पैगाम 

मेरे देश के हर जवान को गीत मेरे पैगाम करे

 जब तक देश में रहे गरीबी न ही कोई आराम करे 

मेहनतकश निर्बल निर्धन सब जागें मन से काम करें 


 सब खेतों का रंग बसन्ती हो सरसों के दानों से

 मेहनत से मोती उपजाये हम खेतों खलिहानों से 


देश बने केसर की क्यारी 

पूरी हो आशाएँ सारी 


खुशहाली उस देश में होगी जो खेती संग्राम करे

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


सब को साथ लिए चल प्यारे सबका साथ निभाता चल

मंज़िल खुद चल कर आयेगी सब से हाथ मिलाता चल


पौंछ ले आँसू हर निर्धन के

दीप चले घर-घर निर्धन के


प्रजातंत्र के इस भारत की जग में रोशन शाम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


   प्राण जाये पर उजड़ ना पाये कोई कली इस गुलशन की

      हर सरहद पर आँख बुरी है इस धरती पर दुश्मन की 


कोई छुपा गद्दार नहीं हो 

जिसको हम से प्यार नहीं हो


ऐसे दुश्मन की साजिश से खबरदार हर आम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


Bachche hindustaan ke बच्चे हिन्दुस्तान के (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-34)

       बच्चे हिन्दुस्तान के 

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के

    सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


जग से न्यारे

जान से प्यारे

इस सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऊँचे-ऊँचे पर्वत जिस की नदियां गहरी बलखाती हैं

 घन घोर घटा चंचल चपला जब सावन में मदमाती है

 सनन-सनन पुरवा चलती अकुले जब संध्या सिन्दूरी

 चटके कलियां चहके पंछी मधुमास महकता अंगूरी

 सुन कृष्ण की बंसी के पीछे गौचर जब गांव में चलते हैं

 क्यों भोर एक प्रतीक्षा के कुटिया में दीपक जलते हैं 


उसी सुहानी संध्या में

सपनों की सुन्दर संज्ञा में

दृश्य दिखाई देंगे तुमको

 सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


प्रथम पाठ हो भक्ति देश की, दूजे में मानव सेवा

तीजे में हो लाज तिरंगा, चौथे में मेहनत रेखा



परमेश्वर जानो पंचम में, छ: है जग में छाये रहना

सात सहारा हो निर्धन का, आठ में अनुशासन रखना

नौ में नायक बनो देश के, दस दुश्मन को टोह रखना

ये गुण जिस बालक में हो तो उस बालक का क्या कहना


मेहनत से कोई दूर नहीं है

फिर बालक मजबूर नहीं है

ये आदर्श हमारे अपने


सुन सच्चे हिन्दुस्तान के

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऐ भारत के लाड़ लाड़लों तुमको ये जीवन अर्पण

 तुम्हीं देश के भाग्य विधाता नवभारत हो दर्पण

 तुम्हीं में गाँधी, नेहरू, शेखर, भगत हैं लाल बहादुर है 

तुम्हीं में बैठी वो इन्दिरा, माणक सा वीर बहादुर है 


मुझको ये मालूम है बच्चों तुममे नंगे भूखे हैं

खून से सींचेंगे हम तुमको चाहे सावन सूखे हैं

 इस विधान को बदल के रख दें

 बच्चे हिन्दुस्तान के। 


Chaand kee sair चाँद की सैर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-33)

 चाँद की सैर 

ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन

 आज उदूंगा गगन में भी 

देखना मेरी छत से तुम

 दाल के दाने दूँ तुझको दे दो पंख तेरे मुझको

 मंगल को आकाश में जाऊँ लोटूं धरती पे बुध की 

सोने के बनवा कर दूंगा

 पंख तेरे जो कर दूं गुम

 ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन 

रात को रोज़ कहे नानी चाँद पे परियों की रानी

 गाड़ तिरंगा चाँद पे आऊँ मैं बालक हिन्दुस्तानी 

आर्य भट्ट से मिल आऊँगा 

पूछंगा हो कैसे तुम

 ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन 

ना मानूं मैं आफत को लगा के सारी ताकत को

 धरती के हर चक्कर पर मैं नयन करूँगा भारत को 

सपने सब साकार करूँगा 

आज लगी है ऐसी धुन 

ऐ चिड़िया रानी तू सुन 

लाया मैं मोती, तू चुन । 

Karmayogi कर्मयोगी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-32)

 कर्मयोगी

किस्मत किसने खोलके देखी, किसने देखा भाग्य विधान

कब धनवान बने निर्धन और निर्धन बन जाये धनवान 


कब किसके घर चावल फुली पके किसी के घर पकवान

सोने की थाली तरसे और पातल पे जीमे भगवान


ये जीवन की अनुपम धारा पाप पुण्य फल देय सदा

 करे तपस्या श्रम साधना ये यश पल पल देय सदा 


चित्तौड़ धरा ने हर युग में पुरूष दिये है बलिदानी

 भामाशाह से शूरवीर और महा जगत के दानी


दया दान की परंपरा में नया तपस्वी आया

    वीर भूमि के आंगन जिस ने यश का दीप जलाया 


 सन्तों के सत्कार में आगे रहा उमर भर प्राणी

 जिन्हें पुकारते हम आदर से ख्याली लाल ईनाणी 


सीधा सादा धोती धारी पगड़ी लेहरी भात पहन

 मेवाड़ी जूती में फबता इस सपूत का रहन सहन 


हिम्मत मेहनत लगन लगा जिसने जी जान से काम किया

इसी पुरूष के पुण्य प्रताप से संस्थानों ने नाम किया


आये होंगे संकट भारी इस मंजिल को पाने में

 हैं साधक ये हमें बता क्या जला तू दीप जलाने में 


थोड़ा ज्यादा कष्ट सहा पर अंधियारे को भगा दिया 

लगन शील को मिले सफलता ला उजियारा बता दिया


जतन तुम्हारे कथन तुम्हारे रहे प्रेरणा स्रोत हमारे

पद चिन्हों पर चले तुम्हारे सदा रहे सौभाग्य हमारे


  रहे प्रभु की कृपा आप पर सीया राम वरदान रहे

  यश वैभव के कलश रहो तुम सदा मान सम्मान रहे


संस्कारों में पलती फलती ये सन्तान तुम्हारी 

मर्यादा के बाग में महके ये सुन्दर फुलवारी 


ले कन्चन की थाल कीर्ति तिलक करे श्रीभाल पर 

  चित्तौड़ नगर को नाज रहेगा अपने ख्याली लाल पर


इस गौरवशाली जीवन का ऊँचा मस्तक भाल रहे

लगे उमर भी तुम्हें हमारी जीवन सदियों साल रहे


Karmayogi Kulishji कर्मयोगी कुलिशजी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-31)

  कर्मयोगी कुलिशजी

कुलिश के बिन कलम का कारवां इस हाल में 

दीपक नहीं हो जैसे कि पूजा के थाल में 


 धरती का लाल आज सितारों में जा बसा 

 फलक के फरिश्तों की कतारों में जा बसा 

दीपक गया वो देवता की देख भाल में 


साथी सखा समाज का वो सारथी रहा

 शब्दों के मोतियों का सदा पारखी रहा 

 अहिंसा का दूत था मेरे भारत विशाल में 


साधक वो साधना का सरोवर थमा गया

 सदियों का प्यार एक जनम में ही पा गया 

लिपटा है लाडला वो तिरंग की शाल में 


ऊँचे खरे ख्याल का खुद्दार आदमी

   वो गुल गुलिस्तां हो गया गुलजार आदमी

लाऊँ कहाँ से ढूंढ के ऐसी मिसाल मैं 


 होना फरेब फर्ज का आला मकाम हो 

जालिम हो बेनकाब खुला इन्तकाम हो

 इन्साफ का हामी वो सियासत की चाल में 


रोशन रहेंगी राहें तुम्हारे असुल में

माहौल महका-महका अकीदत के फूल से

मर्यादा मौन मिल गई चन्दन गुलाल में


 सोडा के पूत पर हमेशा नाज रहेगा

 दुनिया में वो इन्साफ की आवाज रहेगा

   तस्वीर देखते हैं हम उनकी गुलाब में 


ऐ बागबान बहार पे तेरी नजर रहे

 दुःख सुख में वक्त-वक्त पे सबकी खबर रहे 

साया रहे तेरा सदा समय की चाल में 


याद-ए-चराग को कभी बुझने ना देगें हम 

परचम कुलिश के मान का झुकने न देगें हम

  जब्बार, जन सैलाब था जिसके विसाल में । 

Aachaary shree tulasee आचार्य श्री तुलसी (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-30)

 आचार्य श्री तुलसी

आज अहिंसा आलोकित अणुव्रत के आह्वान से

धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से

 आदर्शों के दीप जले अमृत महोत्सव की शान से 

 आप के आदर्शों से बदला हमने सोच ख्यालों को

  पाप की आंधी बुझा ना पाई पुण्य से जली मशालों को

  आपने सुलझा दिये देश के कई जटिल सवाल को

 पंजाब को दी दिशा आपने राजीव संत लोंगोवाल को

  ऐसे संतों से जायेगी हिंसा हिन्दुस्तान से 

     धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से 


पाप के पापीपन की पीड़ा पीर बनी हर द्वारे की

हिंसा थी हर मोड़ पे हरदम कौन सुने दुखियारे की

उठी लाडनू की धरती से एक किरण उजियारे की

पूनम हो गई किरण आज वो रात गई अंधियारे की

रोशन हो गई मानवता तुलसी से संत महान से

धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से

  जीवन अर्पण सभी हमारे जब भी आप पुकारेंगे 

  सभी अहिंसा के पथ चलकर सारी उम्र गुजारेंगे 

हे युग दृष्टा ! हे युग प्राणी ! हमको और संवारिये

 कठिन तपस्या के पचासवें साल में आप पधारिये 

मानवता को मान मिले हिंसा जाये जहान से

 धन्य हुए आचार्य श्री तुलसी के हम वरदान से 

Meera मीरा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-29)

 मीरा 

    मीरा मन हारी बावरी गिरवर गिरधारी से 

    क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


 क्या धरा है हाथी घोड़े सुंदर महलों में

  क्या धरा है सोने चांदी सुंदर गहनों में

     सब बौने मेरे मंदिर की इस चार दीवारी से 

    क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


   फलते खिलते बाग बगीचे ये लहराते खेत

   बैसाखी भण्डार भरे सावन ये बरसे मेघ

    पर फूल चल कर आते हैं बृज की फुलवारी से

       क्या लेना देना राणा जी अब इस दुनियादारी से 


  चंवर ढुलाते नौकर चाकर बैठे सब सरदार

  फौज फांटे तोप तमन्चे हाथों में तलवार 

  पर बंसी भारी तोप तमन्चों की चिंगारी से

   क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


   चलो चलें बृज करें चाकरी मुरलीधर के द्वार 

छोड़ो राजा राज सिंहासन हैं सारे बेकार

   जनम जनम का साथ करो जी कृष्ण मुरारी से 

 क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


  हरि हरे हर पीर तुम्हारी दुःख देने वाले 

  अमृत बरसे तुम पर मुझको विष देने वाले

   विनती यही है मेरी इस सुदर्शनधारी से

     क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 


सूरज चांद सितारे अपने जलथल अपरंपार

 क्या धरती मेवाड़ मेड़ता अपना घर संसार 

जब्बार अमर होते हैं कुल ऐसी कुलनारी से

 क्या लेना देना राणा जी अब दुनियादारी से 

Chittor darshan चित्तौड़ दर्शन (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-28)

 

चित्तौड़ दर्शन

जानी और पहचानी है

हम क्या करें तारीफ यहां की

जग में ऊँची कहानी है

चेतक पर राणा की मूरत

भोली एक बापू की सूरत

मीरा की बलिहारी यहाँ है

नेहरू की फुलवारी है

हम क्या करें तारीफ यहां की

जग में ऊँची कहानी है

चारों तरफ है पानी पानी

पानी है पर दो पुलिया पुरानी

पुलिया नीचे झूमे गोरी

धोये चुंदड़ी धानी है

काशी अजमेर क्यूं जाएं

सर क्यूं ना अपना यही झुकाएं

नीचे दरगाह है मत वाली

ऊपर चण्डी काली है

शीतल जल गौमुख का झरना

इठलाते बल खा कर गिरना

जैसे घाघर को छलकाती

बूंदे भरती पानी है

रेलों कारों ने घेरा है

देश विदेशियों का डेरा है

देख के कीर्ति स्तम्भ को हमारे

करते सब हैरानी है

Chittor hamara चित्तौड़ हमारा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-27)

                                                                       चित्तौड़ हमारा

मान का सम्मान का

आन अपनी शान का

ये हम सब को प्यारा

चित्तौड़ शहर हमारा

कंकर पत्थर मोती इसके अमृत बहती नदियाँ

इस मिट्टी से तिलक लगाते अपनी बीती सदियां

हर पर्वत की छाँव तले

खेत हमारे खूब फले

चन्दन वन है सारा

चित्तौड़ शहर हमारा

मीरा के मीठे भजनों से होता यहाँ सवेरा

जन जीवन को धूप छांव दे सूरज करता फेरा

जब सिंदूरी शाम ढले

जल मंदिर में दीप जले

लगता स्वर्ग ये सारा

चित्तौड़ शहर प्यारा

पन्ना का बलिदान निखारे इसकी गौरव

गाथा फिर प्रताप के शौर्य ने इसका कर दिया ऊँचा माथा

भक्ति शक्ति की ये पहचान

इस को वीरों का वरदान

इससे दुश्मन हारा

चित्तौड़ शहर हमारा

भोले भाले नर नारी सब मीठी बोली बोले

मेवाड़ी भाषा से भाई जैसे मिसरी घोले

प्रीत से बोले मीत उसी के

नाचे गाये गीत खुशी के

झूमें उपवन सारा

चित्तौड़ शहर हमारा

ये चमकीले काले पत्थर इसकी शान संवारे

फौलादी सिमेन्ट सारे ये उद्योग हमारे

कामगार इसके जागे

नव निर्माण में ये आगे

आखिर बना सहारा

चित्तौड़ शहर हमारा

Apana raajasthaan अपना राजस्थान (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-26)

 

          अपना राजस्थान

               माणक मोती कंकर है, धरती सोने की खान

               है, भारत के भाल का टीका अपना राजस्थान

                  चम्बल का चंचल जल देता बिजली का उजियारा

               हाड़ोती के हर आंगन को इसने खूब संवारा

          कोटा ने कलयुग में पाई एक नई पहचान

             बागड़ के पतझड़ में माही ले आई हरियाली

              आदिवासी मेहनत करते लाने को खुशहाली

                इन लोगों के भोलेपन में मिलता है भगवान

                 मारवाड़ का हर सपूत है सफल चतुर व्यापारी

                    दुनिया के हर भाग में इसने देश की साख संवारी 

                 हरा है इन्दिरा नहर से इसका फैला रेगिस्तान

                भक्ति और शक्ति का ये मेवाड़ है गौरव शाली

                    इस मिट्टी के कण-कण की चित्तौड़ ने की रखवाली

         ये प्रताप की पुण्य भूमि है, सारी शक्तिमान

            सगमरमर से ये सजाये दुनिया के घर आंगन

            इसकी मीठी बोली देती दुनिया को अपनापन

             गांव शहर में रहते इसके मेहनतकश इन्सान

              शहर गुलाबी जयपुर जिसकी छबी बड़ी निराली

              कला का सुन्दर नगर नगीना पहले नखरे वाली

               जब्बार, दुआ कर इन लोगों की जाये ना मुस्कान।