Maan-baap माँ-बाप (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-36)

 माँ-बाप 

रूठे तो रूठ जायें भले भाग किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


आँचल में सदा माँ के हमें स्वर्ग मिला है

 बचपन से जवानी का हंसी फूल खिला है 

माँ के बगैर ज़िन्दगी वीरान किला है


 मेरे ख्याल में यह जज़्बात सभी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


 ये प्यार वो है जिसको ख़रीदा नहीं जाता

 ममता के मोल को कभी आंका नहीं जाता 

वो खुश नसीब साया जो माँ-बाप का पाता


 मेरे खुदा ना हो कोई मोहताज किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


जिन पर गज़ब हुआ है उसे प्यार दीजिये

       मुरझाई जिंदगी को फिर बहार दीजिये 

 यतीम को समाज में सत्कार दीजिये 


वरना ये भूख देश को सौगात नहीं दे 

दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 


गुज़री नहीं कभी खुशी जिनके करीब से

 हमने किये सुलूक भी जिनसे अजीब से 

होता खुदा गरीबी में ख़फा गरीब से


 औलाद वालों तुम भी तो माँ-बाप किसी के

 दुनिया में ना बिछुड़े कभी माँ-बाप किसी के 

Paigaam पैगाम (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-35)

          पैगाम 

मेरे देश के हर जवान को गीत मेरे पैगाम करे

 जब तक देश में रहे गरीबी न ही कोई आराम करे 

मेहनतकश निर्बल निर्धन सब जागें मन से काम करें 


 सब खेतों का रंग बसन्ती हो सरसों के दानों से

 मेहनत से मोती उपजाये हम खेतों खलिहानों से 


देश बने केसर की क्यारी 

पूरी हो आशाएँ सारी 


खुशहाली उस देश में होगी जो खेती संग्राम करे

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


सब को साथ लिए चल प्यारे सबका साथ निभाता चल

मंज़िल खुद चल कर आयेगी सब से हाथ मिलाता चल


पौंछ ले आँसू हर निर्धन के

दीप चले घर-घर निर्धन के


प्रजातंत्र के इस भारत की जग में रोशन शाम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


   प्राण जाये पर उजड़ ना पाये कोई कली इस गुलशन की

      हर सरहद पर आँख बुरी है इस धरती पर दुश्मन की 


कोई छुपा गद्दार नहीं हो 

जिसको हम से प्यार नहीं हो


ऐसे दुश्मन की साजिश से खबरदार हर आम रहे 

जब तक देश में रहे गरीबी नहीं कोई आराम करे 


Bachche hindustaan ke बच्चे हिन्दुस्तान के (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-34)

       बच्चे हिन्दुस्तान के 

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के

    सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


जग से न्यारे

जान से प्यारे

इस सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऊँचे-ऊँचे पर्वत जिस की नदियां गहरी बलखाती हैं

 घन घोर घटा चंचल चपला जब सावन में मदमाती है

 सनन-सनन पुरवा चलती अकुले जब संध्या सिन्दूरी

 चटके कलियां चहके पंछी मधुमास महकता अंगूरी

 सुन कृष्ण की बंसी के पीछे गौचर जब गांव में चलते हैं

 क्यों भोर एक प्रतीक्षा के कुटिया में दीपक जलते हैं 


उसी सुहानी संध्या में

सपनों की सुन्दर संज्ञा में

दृश्य दिखाई देंगे तुमको

 सच्चे हिन्दुस्तान के 

सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


प्रथम पाठ हो भक्ति देश की, दूजे में मानव सेवा

तीजे में हो लाज तिरंगा, चौथे में मेहनत रेखा



परमेश्वर जानो पंचम में, छ: है जग में छाये रहना

सात सहारा हो निर्धन का, आठ में अनुशासन रखना

नौ में नायक बनो देश के, दस दुश्मन को टोह रखना

ये गुण जिस बालक में हो तो उस बालक का क्या कहना


मेहनत से कोई दूर नहीं है

फिर बालक मजबूर नहीं है

ये आदर्श हमारे अपने


सुन सच्चे हिन्दुस्तान के

 सुन बच्चे हिन्दुस्तान के 


ऐ भारत के लाड़ लाड़लों तुमको ये जीवन अर्पण

 तुम्हीं देश के भाग्य विधाता नवभारत हो दर्पण

 तुम्हीं में गाँधी, नेहरू, शेखर, भगत हैं लाल बहादुर है 

तुम्हीं में बैठी वो इन्दिरा, माणक सा वीर बहादुर है 


मुझको ये मालूम है बच्चों तुममे नंगे भूखे हैं

खून से सींचेंगे हम तुमको चाहे सावन सूखे हैं

 इस विधान को बदल के रख दें

 बच्चे हिन्दुस्तान के।