Gyaan ka deep jalaane ko ज्ञान का दीप जलाने को (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-42)

 ज्ञान का दीप जलाने को

       गाँव गली घर आंगन-आंगन ज्ञान का शंख बजाने को 

        हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 


        चौपालों पर चर्चा है पढ़ने की और पढ़ाने की

              अनपढ़ लोगों के हाथों में पोथी कलम थमाने की

            बढ़ने की चाहत जागी है नारी के मन मंदिर में

                 सीता सलमा साथ चली लो पढ़ने ज्ञान के मंदिर में 


              पूरब की किरणों ने फिर से रोशन किया ज़माने को

                   हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 


           भला पढ़ाने वाले का और पढ़ने वाले का भी भला 

       इक बंजारा गीत सुनाता देता ये संदेश चला

       भूख गरीबी से छुटकारा अक्षर ज्ञान करायेगा

           हमको अपने अधिकारों की ये पहचान करायेगा 


        हमें बनानी है फिर राहें जीवन सफल बनाने को 

          हम तैयार हैं जन जीवन में ज्ञान का दीप जलाने को 

Lahar लहर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-41)

 लहर 

जनता के राज की लहर है गाँव-गाँव में

 उमंग जोश की ख़बर है गाँव-गाँव में

 गाँवों में लोकतंत्र की गहरी हुई जड़ें 

पंचों के राज का असर हैं गाँव-गाँव में 


  पगडण्डीयाँ घटी सड़क से गाँव जुड़ गये

   देहात की तरफ खुशी के पाँव मुड़ गये

     जवाहर रोज़गार का जब से दिया जला 

   बेईमान और बिचौलियों के होश उड़ गये

       कल्याणकारी काफिले चौपाल पे जाकर 

देते हैं हाथों-हाथ हुनर गाँव-गाँव में

 

इंजन बनाने लग गये लुहार गाँव के

 पीछे नहीं किसी से भी सुधार गाँव के

 कुम्हार ने बनाये हैं बर्तन वो बेमिसाल  

हीरे तराशने लगे सुनार गाँव के 

रथ विकास का चला गती को तेज़ कर 

आशाओं की उजली पहर है गाँव-गाँव में 


पहले से ज्यादा बहन बेटियों को हक मिले

 पिछड़े को पहले काम के चले हैं सिलसिले 

किस्मत संवरने लग गई है अब गरीब की

 बसने लगी है बस्तियाँ बेघर को घर मिले

 पीने को पानी बस्तियों को रोशनी मिली 

सतरंगी शाम और सहर है गाँव-गाँव में 


शिक्षा का गाँव-गाँव में फैला है वो जाल

 जिसमें तरक्की पा रहे हमारे नौनिहाल 

अनपढ़ ने बाद काम के पढ़ना शुरू किया

 गीता का पाठ कर के प्रौढ़ भी हुए निहाल

 ताकील तो तमाम तरक्की का नाम है

 कलम किताब का असर है गाँव-गाँव में 


  गाँवों में भाईचारे का सूरज चमक रहा

    महान देश की महान है परम्परा 

 लाई है रंग खेत में मेहनत किसान की 

 सोना उगल रही है हमारी वसुंधरा

           आने लगी हरियाली रेगिस्तान में भी अब 

   वो लहराती आ रही है नहर गाँव-गाँव में

Veena वीणा (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-40)

 वीणा 

वीणा की गोदी में अधरों के छन्द 

आज इन्हें अधरों पर सोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो 


आया मधुमास लिए कोमल सी काया

     कोयलिया कूक रही अंबुवा की डार

 कली-कली झूम रही भंवरों की गोद में 

 जैसे की नैनों में कजरे की धार 


फूलों ने फैलाई आज वो सुगन्ध 

आज सुधा सागर में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग

  होनी को अनहोनी होने दो

 

   प्रेम का पुजारी मैं पूजा की प्यास सहे

      तुम साधना स्वर हो रूप का सिंगार

 कामना में किस लय की कल्पना की भोर हूँ 

   तुम लाली संध्या हो शब्द का निखार


 यौवन में मदमाती देख ये उमंग 

आज मुझे अपनों में खोने दो

 बाज उठे पायलिया थिरक उठे अंग 

होनी को अनहोनी होने दो