Vishv-Shaanti विश्व-शांति (गंगा की लहरें) - Kavi Abdul Jabbar (GL-10)

विश्व-शांति

आओ मिल करें जतन

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपनाये जमीं

अपनी सुबह और शाम


सरहदें ये क्यों पड़ी

पास फौजें क्यों पड़ी

आज तोपें क्यों अड़ी

मौत सर पे क्यों खड़ी


हिंद की है आरजू

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपना ये जमीं

अपनी सुबह और शाम


जल ना जाये ये चमन

उजड़े ना कोई कली

आयेगा ना फिर अमन

गरज तोप चल पड़ी


हिन्द की है आरजू

जंग बंद हो तमाम

आसमां अपना ये जमीं

अपनी सुबह और शाम



Indira gaandhee इन्दिरा गाँधी ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-9)

                               इन्दिरा गाँधी                          

भारत के नव-निर्माण की पहचान है इन्दिरा

इस युग के हर इतिहास की उंन्वान है इन्दिरा


"से इमान की हामी है

"से निर्मल मन काया

"से दुश्मन हार मान ले

"रासे राखे रब साया

"गासे गालिब रोग बुरे पर

"धीसे धीरज धन पाया


ऐसी "इन्दिरा गाँधीने भारत को जग में चमकाया

एक फरिश्ते की मानी इन्सान है इन्दिरा


ठोस इरादे जिसके हैं

आदर्श गगन से बात करे

कथनी को करनी में बदले

ये सब पावन हाथ करें

मेहनतकश निर्बल निर्धन सब

इस देवी से आस करें

हम तो पूजें फिर भी कम हैं

सारा जग विश्वास करे


भारत को गंगा की मानी वरदान है इन्दिरा

इस युग के हर इतिहास की उन्वान है इन्दिरा

 


Shimala samajhauta शिमला समझौता ( गंगा की लहरें )- Kavi Abdul Jabbar (GL-8)

शिमला समझौता

अभी पुरानी नहीं वो लाशें बिन अर्थी के निकल गईं

 शिमले की बर्फ बताबिन गर्मी के क्यूं पिघल गई


खून दिया हैजान भी दे दीआन पर सब कुछ वार दिया

रही लहू की एक बूंद दुश्मन को सीमा पार किया

अभी रेत से धब्बे मेरे नहीं लहू के उड़ पाये

कहते हैं की फूल खिलेगें खिले नहीं पर मुरझााये

सीमा पर लाशों की दीवारें क्यों रेती बन बिखर गईं


भूल  पाई माँ की ममता अपने लाल सिपाही को

भूल  पाई बहना अपने प्यारे सैनिक भाई को

टूटे ना आँसू बेवा के छूटी ना मेहन्दी हाथों की

चैन गया दिन में बच्चों का नींद चली गई रातों की

मांग सुहागन की वो देखो समझौते में उजड़ गई


क्यों ना उठा तूफान हवा मेंचुप क्यों गंगा-जमुना है

क्यों ना उठी आवाज जीता क्षेत्र हमारा अपना है

उठो हिमाला चुप क्यों हो कश्मीर से कन्या पार उठो

उठो शहीदोंफिर जागो चित्तौड़अरे ललकार उठो

अरेकिनारे कश्ती डूबी तूफानों से निकल गई