Aarajoo आरजू (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-60)

 आरजू

या इलाही कर दे हम सब पर रहम 

छाए खुशियाँ हर तरफ कर दे करम 


हो सलामत और सब फूले फलें 

कामयाबी चूमे सबके हर कदम


 तन्दुरूस्ती बख्श दे हर शख्स की

 दूर जो जाये बवा रन्जों अलम 


 हो तिजारत में तरक्की बरकतें 

रोजी रोटी कर अता रख ले शरम 


खेत उपजे कारखाने दे नफा

 काम दे हर हाथ को रख ले भरम 


 आदमी महफूज हो शैतान से 

मज़लूम पर ज़ालिम ना कर पाये सितम


 हर धरम का मान हो सम्मान हो

 बस वतन के वास्ते निकले ये दम 


भाईचारा भर हर इक इन्सान में 

हो जहाँ में बस मोहब्बत दम बदम


 कर अता औलाद बिन औलाद को 

हो ना खाली गोद कोई आँख नम 


 बेसहारों को सहारे के लिए

 चलता रहे जब्बार तू तेरी कलम 


Mahaaveer महावीर (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-59)

 महावीर

 ओ अहिंसा के पुजारी कर दिया तूने कमाल

 ओ दया के देवता महावीर जग तुमसे निहाल 


 पाप के अंधियारे पूनम के उजाले खा गये

 पुण्य के आकाश में हिंसा के बादल छा गये

रो पड़े गंगा के धारे जब लुटा सबका धरम

  सह ना पाये दीन दुखियारे भला जुल्मों सितम

   खोट मानव के सभी पल में दिये तुमने निकाल 

ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल


जनम कुण्डलपुर हुआ उसकी छवि कुछ और थी

थी सुहानी वो निशा रंगीन प्यारी भोर थी

आया लेकर नव किरण सूरज तभी उस गाँव में

 सो रहा था एक मसीहा माँ के आँचल छाँव में


खोट मानव के सभी पल में दिये तुमने निकाल 

  ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल


 बाल योगी तुम मेरे इस देश के वरदान हो

साधना सिद्धार्थ कुल की तुम दया की खान हो

 डरती बाधाएं सदा ठोकर तुम्हारे पाँव से

कष्ट भागे दूर तुम निकले जिधर जिस गाँव से

दूर अंधियारे गये तूने जलाई वो मशाल


खोट मानव के सब पल में दिये तुमने निकाल 

ओ दया के देवता महावीर जग तुम से निहाल 


Vandana वन्दना (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-58)

 वन्दना

ऐ माँ सरस्वती तुम्हारी वन्दना करें

 हाथ जोड़ हम तुम्हारी अर्चना करें 

शुद्ध कर हमारे मन के दोष छांट दे

 विद्या दया का दान हम सभी में बाँट दे 

दे वो शक्ति जन की सेवा वंदना करें 


  एकता के सूत्र में बंधे रहें सभी

 मन मुटाव से सदा बचे रहें सभी 

दर्द बांट लें किसी को दर्द ना करें


हम जीएं मरें हमारे देश के लिए

 "सत्यमेव जयते" संदेश के लिए

 बुरी नज़र तिरंगे पर पसंद ना करें


 देना मेरे देश को वो नेता भारती 

  कुर्सी से पहले देश की उतारें आरती

 जनता को मेरे देश की जो तंग ना करे 


अनंत में झुका के सर बिछाके दो नयन

 स्वीकार लो, स्वीकार लो, विनम्र ये नमन

 तेरे चरण कमल से शीश तर्क ना करें