Apana vatan अपना वतन (गंगा की लहरें) - Kavi Abdul Jabbar (GL-4)

अपना वतन

ये है अपना वतन

ये है अपना चमन

प्यारी-प्यारी धरती

प्यारा-प्यारा ये गगन 


सदियों से सोने जैसी इस की सहर

केसर जैसी शाम, चांदी जैसी दोपहर

सोने में सुहागा देखो सागरों साथ

रात रानी, चांद दूल्हा, तारों की बारात


भोर में जो पत्ती-पत्ती पड़े शबनम

ओस की ये बूंदें नहीं मोतीयों से कम

पहली-पहली किरणों को पाये ये ज़मी

देवी-देवताओं को भी भाये ये ज़मी


दावा हो खुदाई से इरादा नहीं हैं

जन्नत में नजारे इससे ज्यादा नहीं हैं

इसको संवारों इसके साये में पलो

चन्दन है ये माटी इसको माथे पे मलो


सर को झुका लो करो इस को नमन

ये है अपना वतन, ये है अपना चमन


फूलों जैसे लोग ये नूरानी नारियाँ

इस धरती के बच्चे हैं खिलती फुलवारियां

भोले हैं गरीब पर इन्सान बड़े हैं

सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की खातिर लड़े हैं


गंगाजल सा जग में कहीं पानी नहीं है

दुनिया में इस देश का कोई सानी नहीं है

जो जनमा हो इस पर इसका हामी नहीं है

वो जालिम गद्दार हिन्दुस्तानी नहीं है


ऐसे जयचन्दों को किया इसके दफन

ये है अपना वतन, ये है अपना चमन


आजादी तो दे गये दिवाने देश के

हँसते फाँसी चढ़ गये परवाने देश के

पूरा कर गये वो जो भी उनका काम था

मरते वक्त भी वतन का लब पे नाम था


मर के भी अमर वो अपना नाम कर गये

आजादी की मांग में सिन्दूर भर गये

रोशन रहे यादों से दिवानों के मजार

आई उनके खून से विरानी में बहार


कुर्बानी की ऐसी नहीं जग में मिसाल

जलियां वाले बाग में कुर्बान कई लाल

बलिदानों की बस्ती-बस्ती छाई तब गुलाल

राजगुरू, सुखदेव, भगत का देखा जो कमाल


पैदा किये कैसे-कैसे इसने रतन

ये है अपना वतन, ये है अपना चमन


सीमाओं पे फिर दुश्मन ने डेरा डाला है

पश्चिम वालों का पूरब में फिर से चाला है

पिन्डी पेइचिंग वॉशिंगटन की साजिश ना चले

जागो, घर में गद्दारों की साजिश ना चले


इस धरती पर दुश्मन हरदम घातों में रहे

हौसले हमारे फिर भी हाथों में रहे

माँ की खातिर लड़ने को तैयार हो जाओ

मसले हल करने को सब तैयार हो जाओ


कौन है जो मांगे हमसे प्यारा कश्मीर

दी जाती है दान में क्या कोई तकदीर

जिन्दगी से ऊँची अपनी आरजू रहे

कट जाये सर, वतन की आबरू रहे


बाँधे रहो इसके खातिर सर से कफन

ये है अपना वतन, ये है अपना चमन


Vidhaata विधाता ( गंगा की लहरें) -- Kavi Abdul Jabbar (GL-3)

 विधाता

संग गरीबों का गम में निभाता रहे

 साथ उसके हमेशा विधाता रहे।


देता सदियों से सूरज हमें रोशनी

    आई किरणों में उसके क्या कोई कमी

जो अंधेरों में राहें दिखाता रहे

 साथ उसके हमेशा विधाता रहे।


 ये परायाये अपना हैकैसा भरम

साथ जाता है जिसका हो जैसा करम

जिसका नेकी की परियों से नाता रहे

साथ उसके हमेशा विधाता रहे।


दीन पर हो दयाये बहुत लाजमी

  आदमी बन के जग में जीये आदमी

  ये सबक सीखे जग को सिखाता रहे

साथ उसके हमेशा विधाता रहे।


 बेसहारों का कोई सहारा बने

 डूबती कश्तियों का किनारा बने

उसकी कश्ती खुदा खुद चलाता रहे

साथ उसके हमेशा विधाता रहे।


दिन गयारात आईसवेरा हुआ

चल दिया खत्म जिसका बसेरा हुआ

वो अमर जो जहां को लुभाता रहे

साथ उसके हमेशा विधाता रहे।

Praarthana प्रार्थना (गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-2)

 प्रार्थना

मेरे मालिक, सभी के दिल में तूं ज्ञान का एक दीया जला दे

 तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे

कटे किताबों की रोशनी से

ये जिन्दगी का सफर खुशी से

कलम दिखाये कमाल अपना, जो हाथ में तू हमें थमा दे

तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे

ये चांद, सूरज, जमीन, तारे

समय से आते हैं जाते सारे

हमें भी पहचान हो समय की, तू साधना का हुनर सिखा दे

तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे

 मिटे गरीबी बेरोजगारी

मिले तालीम सबको सारी

कोई ना अनपढ़ रहे वतन में, ये दाग जीवन से तू मिटा दे

तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे

हम एक थे और एक हैं हम

रहेंगे आगे भी एक ही हम

 इस एकता में कमी ना आये, तू एकता सौ गुनी बढ़ा दे

तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे


गगन को छूता रहे तिरंगा

अमन का हरदम उड़े परिन्दा

 जिऐं वतन के लिए मरें हम, हमें तू शक्ति सदा सदा दे

तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे

तू काम पूरे सभी के कर दे

दया से दामन सभी के भर दे

तेरे इशारे से बदले मौसम, तू फूल पत्थर में भी खिला

दे तू लिखने-पढ़ने की सबके मन में भली सी एक भावना जगा दे