Utho sipaahee mere desh ke उठो सिपाही मेरे देश के ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-22)

 

उठो सिपाही मेरे देश के 

कहाँ अंधियारे की औकात

जो खाये सूरज की सौगात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ।


धरम की आड़ में धनवानों ने चाहा शासन पाना

सत्ता के लालच में तोड़ा देश का ताना-बाना

गंगा-जमुनी इस अपनी तहजीब को तोड़ा-मोड़ा

दलबदलू लोगों ने देश को नहीं कहीं का छोड़ा

 

जिन के तन उजले मन काले

शामिल काले करमों वाले

ऐसे लोगों को चुनाव में देंगे भारी मात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ

 

देश की जनता दल-दल में फंस लूटी पीटी घबराई

सत्ता के घटकों ने देश की गरिमा बहुत गिराई

ना मंजिल ना कोई ठिकाना ये लठ्धारी सारे

हाथों-हाथ करोड़ों लेते करते वारे-न्यारे

 

इन का जनहित लक्ष्य नहीं है

ये भाषण में दक्ष नहीं है

 

ये लक्ष्यहीन, ये दिशाहीन, ये अनुभवहीन जमात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश. तुम्हारे साथ।

 

खतरा मंदिर-मस्जिद को गिरिजा-गुरूद्वारा खतरे में

फिरका परस्ती रूकी नहीं तो भाईचारा खतरे में

रिश्ते-नाते खतरे में हैं अमन हमारा खतरे में

सरहद पे बैचेन है फौजी वतन हमारा खतरे में

 

ये दशा देश की भाई

ये शासक हैं सब हरजाई

तो फिर से हो अमन-चैन की भारत में शुरूआत

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ।

 

धरम के नाम पे खून-खराबा, हेराफेरी, दंगा

पहन कवच कानून का कातिल राखे चाकू नंगा

जज मुल्जिम में रिश्ते-नाते रिश्वत खोरी भारी

चोर हो चौकीदार बचे क्या बोलो यार तिजोरी

 

अफरा-तफरी मारा मारी ये

मतलब के सत्ता धारी

ऐसी हालत देख देश की देंगे इन को मात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ।

रोक सके ना रोक सकेंगे पर्वत राह हमारी

देश की जनता लगाये बैठी फिर से चाह तुम्हारी

देश की कश्ती तूफान में माँझी ने हमें पुकारा

आंधी का रूख मोड़ के ले तू नजदीक किनारा

 

ये पतवार थाम ले भाई

तुझ से देश ने आस लगाई

वर्ना कश्ती संग किनारे डूबे रातों-रात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ।

 

तेरी बरसों की मेहनत से आई ये खुशहाली

बंजर धरती पर फसलों से छाई ये हरियाली

चट्टानों की छाती पर तूने ही पेड़ लगाये

चीर के सीना पर्वत का नहरों के पानी लाये

 

करना इनकी देखा-भाली

माली बन तू कर रखवाली

खून पसीनों से आई है बिन बादल बरसात

उठो सिपाही मेरे देश के, देश तुम्हारे साथ।

 

अंग्रेजों से आजादी की तूने लड़ी लड़ाई

जब जब संकट देश पे आया तूने जान लड़ाई

देख फिरंगी तेरे डर से देश छोड़ कर भागा

तोड़ गुलामी की जंजीरे देश का यौवन जागा

Shaheed शहीद ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-21)

 

शहीद

आखों का नूर वो वतन की शान हो गए

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

 

सरहद पे सीना तान के दिन रात था खड़ा

उसके लिए तो जिन्दगी से देश था बड़ा

जांबाज वो जमीं से आसमान हो गये

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

 

ताकत वो हौसला थे पयामे अमन थे वो

भारत विशाल देश के जाने चमन थे वो

होकर अमर वो देश का इमान हो गये

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

 

जिस पथ से गुजरा वीर वो फूलों से पट गया

सीने से सूरमा के तिरंगा लिपट गया

लो देवता भी जिनके कद्रदान हो गए

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

 

दुनिया ने देखा जंग में जिसके कमाल को

ऊँचा किया जहान में भारत के भाल को

जो मिट के हमवतन पे मेहरबान हो गए

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

 

उसकी वतन परस्त इबादत को याद कर

मेरे वतन तू उसकी शहादत को याद कर

जब्बार, वो जहान की पहचान हो गये

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

Deshagaan देशगान ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-20)

                                                                             देशगान

दिल दिल्ली जिस देश का भाई जनता जिस्मोजान

सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान

 

सात सुरों की सरगम साधे गाये पवन अकेला

इन्द्रधनुष  के रंग बिखेरे ये  मौसम अलबेला

उड़ते   पंछी   शाम   सवेरे   गायें    मंगल-गान

सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान

 

जहां  चरागे  प्यार मोहब्बत हर दिल में जलता है

जहां  का  बच्चा  आदर्शों  के  पलने  में पलता है

जहां सभी के दिल में  रहता गीता  और  कुरआन

सारा  जमाना  इस जन्नत  को कहता हिन्दुस्तान

 

जहां शिवाजी और प्रताप नेता सुभाष मतवाले

आजाद, भगत, अश्फाक जहां पर देश पे मिटने वाले

लाल बहादुर, गांधी, नेहरू, इन्दिरा जहां महान

सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान

 

रहमत रब की, मेहनत सबकी लाती है खुशहाली

सदा हिमाला करता आया इन सबकी रखवाली

जिन्दादिल हैं हर सरहद पर इसके वीर जवान

सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान

 

मीरां, तुलसी, सूर, कवि, टेगौर वो पंत निराला

गालिब, खुसरो, जफर, जोश वो मीर से शायर आला

जहां कबीरा रस बरसाये कृष्ण भजे रसखान

सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान |

 

आजादी का जश्न यहाँ पर एक तीरथ होता है

उजियारा हँसता है पग-पग अंधियारा रोता है

जब्बार, तिरंगा नील गगन में उड़ता आलीशान

 सारा जमाना इस जन्नत को कहता हिन्दुस्तान।