Sadee ka sooraj सदी का सूरज ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-16)

 

सदी का सूरज

एक सूरज के टुकड़े हुए, सौ बरस के अंधेरे गिरे

अब दुआ मांगिए देश में फिर से पैदा ना हो सर फिरे

आई ऐसी चमन में खिज़ा के बहारों का दम घुट गया

बागबां खुद चमन पर मिटा और शबनम पे शोले गिरे

शक्ल संतों में शैतान की कैसी फितरत है इंसान की

इनके उपदेश में वो असर जैसे सावन में सूखा गिरे

वो जवां रहनुमा, अब कहां वो हँसी, बागबां अब कहाँ

इंदिरा जी का वो लखते-जिगर आँख की पुतलियों में फिरे

राज राजीव का याद आयेगा जब वतन चाँद पर जाएगा

फरिश्ते तेरी सोनिया अब जहां में अकेली फिरे

वक्त सूरज का फिर आयेगा तुम सा राहुल नजर आयेगा

जब प्रियंका लड़े जुल्म से और जालिम का परचम गिरे

ये सियासत सड़ी लाश है इसको गहरा दफन कीजिये

इसकी बदबू का जहरीलापन इस सिरे से गया उस सिरे

बोला नेल्सन मण्डेला का दिल दोस्त दुनिया के राजीव बड़े

उनके कारण मैं आजाद हूँ अफ्रीका के बुरे दिन फिरे

ये अकीदत के नग्में मेरे तुमपे कुर्बान लाड़ले

तेरे दुश्मन गिरेंगे सभी जैसे पतझड़ में पत्ते गिरे

चाहे टूटे करोड़ों बदन पर ना टूटे हमारा वतन

साजिशों से संभल कर रहो घर के आँगन में दुश्मन फिरे

आरजू हैं ये जब्बार की तुमको जन्नत मिले जाने जाँ

इन्दिरा जी का जो दीदार हो मां से कहना वतन के गिले

Bhaarat desh mahaan भारत देश महान ( गंगा की लहरें)-Kavi Abdul Jabbar (GL-15)

 

भारत देश महान

दुनिया की पहली पहचान

अपना भारत देश महान

लेते जनम जहां भगवान

वो है अपना देश महान

 

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई

सबने इसकी शान बढ़ाई

जब-जब इस पर संकट आया

जान गंवा कर आन बचाई

जिस पर तन-मन-धन कुर्बान

वो है अपना देश महान

 

मौसम इस का रंग बिरंगा

बहती कल-कल पावन गंगा

बलिदानों की इस बस्ती में

छूता है आकाश तिरंगा

आजादी का भव्य निशान

अपना भारत देश महान


महके अपना गुलशन सारा

हो हर फूल में भाईचारा

हरियाली पर, खुशहाली पर

हमने अपना जीवन वारा

जन-गण-मन जिसका गुणवान

वो है अपना देश महान

  

आज ये हम बच्चों का सहारा

कल हम होंगे इसका सहारा

सदियों से संसार ये जाने

हम इसके और ये है हमारा

जग करता जिसका सम्मान

वो है अपना देश महान

Ganatantr गणतंत्र (गंगा की लहरें) - Kavi Abdul Jabbar (GL-14)

 

गणतंत्र

धन्य हुआ वो देश जिसे ऐसा गणतंत्र मिले

जिसके स्वागत की खातिर सरसों के फूल खिले

 

दुनिया के गुलजार से हमने चुने फूल अनमोल

पात-पात, डाली-डाली का किया देश-हित मोल

 

तोल-मोल के इस नियमन में लाभ से मूल मिले

जिसके स्वागत की खातिर सरसों के फूल खिले

 

होती हक की खूब हिफाजत फर्ज की साख फले

जन-जन के जीवन-यापन की फलती शाख फले

 

धर्म सलामत सबका जिसमें नेक उसूल मिले

जिसके स्वागत की खातिर सरसों के फूल खिले

 

ठोस इरादे, दूर की दृष्टि, अनुशासन की राहें

आशाओं का नव प्रभात लाया है नई राहें

 

मेहनत तंत्र बना जीवन का समय अनुकूल मिले

जिसके स्वागत की खातिर सरसों के फूल खिले