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Meera Ke bhajan se : Kavi Abdul Jabbar
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Bola Re Murli Wala Suraj Ki kiran se Bharat Me Bhor hogi to meera ke bhajan se By Kavi Abdul Jabbar
Amar Shahid "अमर शहीद "
आँखों का नूर वो वतन की शान हो गए,
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
सरहद पे सीना तान के दिन रात था खड़ा
जांबाज वो जीम से आसमान हो गए
उसके लिए तो जिन्दागी से देश था बड़ा
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
होकर अमर वो देश का ईमान हो गए
जाकत वो हौंसला थे, पयामें अमन थे वो
भारत विशाल देश के जाने चमन थे वो
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
जिस पथ से गुजरा वीर वो फुलों से पट गया
लो देवता भी जिनके कदरदान हो गए
सीने से सूरमा के तिरंगा लिपट गया
दुनियाँ ने देखा जंग में जिसके कमाल को
मेरे वतन तू उसकी शहादत को याद कर
ऊँचा किया जहान में भारत के भाल को
जो मिट हम वतन पे मेहरबान हो गए
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
उसकी वतनपरस्त इबादत को याद कर
“जब्बार” वो जहान की पहचान हो गए
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
कवि अब्दुल जब्बार
Amar Shahid : By Kavi Abdul Jabbar
Ankho Ka noor wo watan ki shan ho gaye jo haste haste desh par kurbaan ho gaye
By kavi Abdul Jabbar
Ye Nirmal Neer Ganga Ka ( ये निर्मल नीर गंगा का) Kavi Abdul Jabbar
उजाले कर दे जीवन में,
उमंगे भर दे हर मन में,
धो डाले गुनाहों को,
दिखा दे नेक राहों को,
मिटा दे मन की आहों को,
वे चाँद-सी चमकता है हिमाला इसके आँचल में
ये निर्मल नीर गंगा का।
ये गुजरें पेड़ की झुरमुट में जैसे नैन काजल में
ये गुजरे पर्वतों के बीच जैसे बिजली बादल में
हो संध्या जब किनारों पर,
बजे कल-कल की यूँ आवाज जैसे घुंघरु पायल में,
बहारें हैं बहारों पर,
मिले जिस खेत को ये जल वो केसर में ढ़ले सारा
जलें यूँ दीप धारों पर,
ये निर्मल नीर गंगा का।
उमड़ जाये हरी खेती वो मोती-सा फले सारा
भरे हिम्मत किसानो में,
मवेशी मस्त मनचाहा पिलाये दूध की धारा
जहाँ उड़ता हुआ पंछी भजे हरी ओम का नारा
चमक चंादी सी दानो में,
हो पापी, गिर गया हो पाप से जग की निगाहों में,
बढ़ाये स्वाद खानों में,
ये निर्मल नीर गंगा का।
भटक जाता है जब कोई कभी जीवन की राहों में,
करे पतझड़ में भी सावन,
लगाले ये गले उसको, उठाले अपनी बाहों में
संवारे हर जनम उसको, उठाले अपनी पनाहों मंे
करे पत्थर को ये पावन,
थमाये पुण्य का दामन,
मुसीबत में रखे सबका खरा ईमान गंगाजल
ये निर्मल नीर गंगा का।
हमारी संस्कृति और देश की पहचान गंगाजल
रहा सदियों से सन्तों का यही गुणगान गंगाजल
सबल विश्वास है अपना,
हकीकत है नही सपना,
हो खाली गोद पीले ये, तो गोदी उसकी भर जायें
ये जल क्या मंत्र है अपना,
ये निर्मल नीर गंगा का।
लगाले नैन से कोई, तो ज्योति उसकी बढ़ जायें
लगाले भाल से कोई, मुक्कदर उसके बन जायें
हैं आशाओं भरा पानी,
करोड़ो की कमाई छोड़, घर में लाओं गंगाजल
नहीं इसका कोई सानी,
करें हम पर मेहरबानी,
ये निर्मल नीर गंगा का।
हमंे जीना तो बरसो है मगर मरने को है एक पल
उजाले जिन्दगी के आज बन जायें अंधेरे कल
ये शक्ति देश का दर्पण,
ये निर्मल नीर गंगा का।
विदेशी एक आकर्षण,
ये मेरे गीत का दर्शन,
Interview With AAP Leader, Kumar Vishwas : Nirmal Neer Ganga Ka
A view of the Ganga river through the eyes of a poet Kumar Vishwas say Neermal Neer Ganga Ka Write by Kavi Abdul Jaffar
ABP News Independence Day special ‘Kavi Sammelan’ with Kavi Abdul Jabbar
To celebrate those martyrs who gave their lives for India’s independence, ABP News presents this special show Kavi Sammelan. Popular poets from all over India and families of freedom fighters have gathered to pay a tribute to martyrs. Following poets participated on the show: Abdul Zabbar (Chittorgarh)
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