जय हिन्द .....


इस गुलशन के हर फूल को बचाने के लिए 
आज़ादी के उसूल को बचाने के लिए

वादी-ऐ-कश्मीर की हिफाज़त के लिए 
रावी गंगा नीर की हिफाज़त के लिए 

हर नौजवान देश पे कुर्बान रहेगा 
हम रहे ना रहे पर हिन्दस्तान रहेगा
कवि अब्दुल जब्बार

मीरा.....

मीरां मन हारी बावरी गिरवर गिरधारी से

क्या लेना देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

क्या धरा है हाथी घोड़े सुंदर महलों में
सब बोने मेरे मन्दिर की इस चारदीवारी से
क्या धरा है सोने चांदी सुंदर गहनों में
बैसाखी भण्ड़ार भरे, सावन में बरसे मेघ
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फलते-खिलते बाग-बगीचे, ये लहराते खेत
चंवर ढुलाते चाकर बैठे सब सरदार

पर फूल चल कर आते है ब्रज की फुलवारी से
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फौज फांटे तोप तमन्चे हाथों में तलवार
पर बंशी भरी, तोप तमन्चों की चिंगारी सें
चलो चलें बृज करे चाकरी मुरलीधर के द्वार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
छोड़ो राजा राज सिंहासन है सारे बेकार जन्म-जन्म का साथ करो जी कृष्ण मुरारी से हरी हरे हर पीर तुम्हारी दुःख देने वाले अमृत बरसे तुम पर मुझको विष देने वाले
“जब्बार” अमर होते है कुल ऐसी कुलनारी से
विनती यही है मेरी इस सुदर्शनधारी से क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से। सुरज चांद सितारे अपने जलथल अपरम्पार क्या धरती मेवाड़ मेड़ता अपना घर संसार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

कवि अब्दुल जब्बार

पानी बचाएँ हम

प्यासे को पानी प्यार की बस्ती बसाएँ हम,

ने आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।

आवारा बादलों ने सूखा दी वसुन्धरा
मौसम तो बदमिजाज है, सावन भी मसखरा

काली घटा फरार है कैसे बुलाएँ हम
फिर भी भली जीम ने हमें नीर दिया है

लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
लालच इस धरा का जिगर चीर दिया है
पर वास्ते सभी, के अभी जल बचाएँगे
इस प्यारी कायनात को क्यों कर सताएँ हम पैसा अभी बचे ना बचे कल बचाएँगे अनमोल जल से जान किसी की बचाएँ हम
वो पुण्य एक प्यास बुझाने में पाओगे
लो अजा कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। सौ साल सर झुकाने पे तो पुण्य पाओगे सस्ता है सौदा साथ बराबर निभाएँ हम
रूठी हुई बहार को फिर से मनाएँ हम
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। पानी के पायदान पे साँसों का ये सफर बेवक्त रुका ना जाएँ जमाने से हार कर
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
ले आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। इंसान तो इंसान से रिश्ता निभाएगा बेबस पशु परिन्दा कहाँ पानी पाएगा जिसने पिलाया दूध उसे जल पिलाएँ हम
सहारा हो सब्ज रेत में सूरजमुखी खिले
बेटे के नाम एक, तो बेटी के नाम दो आँगन में अपने पेड़ लगना है आपको अब तो समय की धूप से बच्चे बचाएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
बेटी ना मारो पेट में संयम से काम लो
प्यासे परिन्दे पाएँ जो पानी खुशी मिले सदियों से तपती रेत में चश्में हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। सुखे से पिटना है तो हिम्मत से काम लो
बिगड़े हुए निजाम को फिरसे बनाएँ हम
बेटी-बहन के प्यार को दिल में बसाएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। नायाब आबे आब चलो पीले बाँट कर थोडे़ को ज्यादा जान चलो जी ले साँस भर लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।
प्यासों के लिए देश में गंगा भी कम पड़ी
पानी की बूँद बूँद जवां जान जिन्दगी पानी बगैर प्यास के बेजान जिन्दगी जीवन है जल जहान को पल पल बताएँ हम लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम। आजादी सौ करोड़ यहाँ इस कदम बड़ी “जब्बार” अब तो देश में गिनती घटाएँ हम
लो आज कल के वास्ते पानी बचाएँ हम।



कवि अब्दुल जब्बार