Kavi Abdul Jabbar






हरियाली

हरियाली हो हर हाल में इस देष के दामन में
वर्ना बारिश को तरसेंगे बरसों सावन में

सुन्दर गांव की बस्ती भारत खेतीभर है काम
निर्मल नीर की नदियाँ इसमें बांध खड़े जल थाम
फिर भी जल संकट है तो हल ढूढ़ों संसाधन में


काटे पेड़ करोड़ो हमने रोपे चन्द हज़्ाार
इसिलिए तो चली गई है हमसे दूर बहार
बंजर में बाग बगीचे हो मरुधर के आँगन में


पेड़ों ने पर्वत पे रोके बादल पानीदार
पत्ते भी हिल मिल के करते मेघों का सत्कार
हर पर्वत हो फिर हरा भरा मौसम मन भावन में


हरियाली से देश में खुशहाली आती है
बंजर धरती देश में बदहाली लाती हैं
हरियाली है तो सावन है वर्ना क्या सावन में


ताजा हवा पानी हमें साँसे सवाई दे
बिन रोग जीने की कला घर की सफाई दे
बारिश का पानी शामिल हो सारे धरती धन में


ंपंछी पाए दाना पानी चरे मवेशी घास
जंगल में बेखोफ परिन्दे झूमे जल के पास
पनपे ना झुण्ड सियारों के शेरों के शासन में


पानी से कल आज हमारा जल से जीवन जान
बिन पानी के खेती कैसी कैसा खेत किसान
वर्षा जल रोकों खेत में जंगल घर आंगन में


नन्हा सा मेहमान आए, घर में हो शुभ काम
पौधे पांच लगाए वारिस उस बालक के नाम
पेड़ों की पुँजी साथ देगी लालन पालन में


पांच पेड़ की लकड़ी लेता हर अन्तिम संस्कार
पांचों पेड़ लगा जीते जी कर वन पे उपकार
है लोक से परलोक पथ अग्नि आलिंगन पे


गाय गंगा गीता के उपकार मत भूलों
भारती हो भारत के संस्कार मत भूलों
पीपल में पानी डालके बो तुलसी आंगन में


अब्दुल जब्बार
E-mail : abduljabbarkavi@gmail.com
Ph : 01472-240677, 09414109181






गणतंत्र गरिमा

धन्य हुआ वो देश जिसे ऐसा गणतंत्र मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

दुनियां के गुलशन से हमने चुने फूल अनमोल
सतरंगी हर फूल में शबनम लाई खुशबू गोल
मौसम बदले चमन में फिर भी सब अनुकूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

जियो और जिने दो नगमा जब कोयल ने गाया
प्रजातंत्र का पँछी बाग में फूला नहीं समाया
अमन चैन के चन्दन वन में प्यार की धुप खिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले। 

हक की हुई हिफाजत हमको फर्ज निभाना आया
प्रजातंत्र की पुँजी पनपी लोकतंत्र की माया
बरसों बाद भी पनप ना पाये शिकवे और गिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

मन्दिर मस्जिद गिरजे सुन्दर मन भावन गुरुद्वारे
सत्य अहिंसा दवा धरम के मान सरोवर सारे
धर्म सलामत इनमें सबको नेक असूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

हक ना मारे कोई किसी का सब के सभी सहारे
इन्साफ दिला कर ही दम लेते ये कानून हमारे
भाईचारे के धागे से दामन चाक सिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

जन कल्याणी न्याय परख है विधीवत ज्ञान की धारा
बना प्रेरणा सकल विश्व में ये सँविधान हमारा
जब्बार जगत में भारतवासी भी मकबूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले

 अब्दुल जब्बार