धन्य हुआ वो देश जिसे ऐसा गणतंत्र मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
दुनियां के गुलशन से हमने चुने फूल अनमोल
सतरंगी हर फूल में शबनम लाई खुशबू गोल
मौसम बदले चमन में फिर भी सब अनुकूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
जियो और जिने दो नगमा जब कोयल ने गाया
प्रजातंत्र का पँछी बाग में फूला नहीं समाया
अमन चैन के चन्दन वन में प्यार की धुप खिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले।
हक की हुई हिफाजत हमको फर्ज निभाना आया
प्रजातंत्र की पुँजी पनपी लोकतंत्र की माया
बरसों बाद भी पनप ना पाये शिकवे और गिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
मन्दिर मस्जिद गिरजे सुन्दर मन भावन गुरुद्वारे
सत्य अहिंसा दवा धरम के मान सरोवर सारे
धर्म सलामत इनमें सबको नेक असूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
हक ना मारे कोई किसी का सब के सभी सहारे
इन्साफ दिला कर ही दम लेते ये कानून हमारे
भाईचारे के धागे से दामन चाक सिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
जन कल्याणी न्याय परख है विधीवत ज्ञान की धारा
बना प्रेरणा सकल विश्व में ये सँविधान हमारा
जब्बार जगत में भारतवासी भी मकबूल मिले
जिसके स्वागत के खातिर सरसों के फूल खिले
अब्दुल जब्बार