यादो के झरोखे से ....



भारत कामर्स की प्रमुख पत्रिका के मुख पृष्ठ पर 
संत कवि पवन दीवान ,डॉ.धानुका, हेमंत श्रीमाल
भावसार बा, अब्दुल जब्बार,मोहन सोनी,कैलाश
जैन तरल,और इस पत्रिका का संपादक जगन्नाथ विश्व 
पंडित दीनदयाल उपाध्याय चौक में हो रहे
कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करते हुए हास्य 
कवि सरदार दिलजीतसिंह रील | मंचासीन----
काव्य कुल गुरु पंडित सत्यनारायण सत्तन ,
प्रो. अजहर हाशमी , अब्दुल जब्बार ,जगन्नाथ विश्व 



हास्य के ख्यात कवि सत्यदेव शास्त्री भोंपू 
और गीतों के सुकुमार जनाब अब्दुल जब्बार 
के मिलेजुले अंदाजे -बयाँ की एक झलक 


बिरलाग्राम भारत कामर्स स्टाफ क्लब में 
आयोजित काव्य उत्सव में काव्य पाठ करते हुए 
ख्यात कवि बालकवि बैरागी,||| मंचासीन ,सर्वश्री
डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन, जैमिनी हरियाणवी,
एकता शबनम, अब्दुल जब्बार औरजगन्नाथ विश्व \\\\\\
दिल्ली लालकिला कवि सम्मेलन में माइक पर
काव्य पाठ करते हुए स्वयं | मंचासीन ख्यात कवि
डॉ शिवमंगलसिंह सुमन, बालकवि बैरागी ,
सुरेन्द्र शर्मा , इंदिरा इन्दू, और अब्दुल जब्बार जगन्नाथ विश्व आदि ...|

Ye Nirmal Neer Ganga Ka ( ये निर्मल नीर गंगा का): Kavi Abdul Jabbar


उजाले कर दे जीवन में,
उमंगे भर दे हर मन में,
धो डाले गुनाहों को,
दिखा दे नेक राहों को,
मिटा दे मन की आहों को,
वे चाँद-सी चमकता है हिमाला इसके आँचल में
ये निर्मल नीर गंगा का।
ये गुजरें पेड़ की झुरमुट में जैसे नैन काजल में
ये गुजरे पर्वतों के बीच जैसे बिजली बादल में
हो संध्या जब किनारों पर,
बजे कल-कल की यूँ आवाज जैसे घुंघरु पायल में,
बहारें हैं बहारों पर,
मिले जिस खेत को ये जल वो केसर में ढ़ले सारा
जलें यूँ दीप धारों पर, ये निर्मल नीर गंगा का। उमड़ जाये हरी खेती वो मोती-सा फले सारा
भरे हिम्मत किसानो में,
मवेशी मस्त मनचाहा पिलाये दूध की धारा जहाँ उड़ता हुआ पंछी भजे हरी ओम का नारा चमक चंादी सी दानो में,
हो पापी, गिर गया हो पाप से जग की निगाहों में,
बढ़ाये स्वाद खानों में, ये निर्मल नीर गंगा का। भटक जाता है जब कोई कभी जीवन की राहों में,
करे पतझड़ में भी सावन,
लगाले ये गले उसको, उठाले अपनी बाहों में संवारे हर जनम उसको, उठाले अपनी पनाहों मंे करे पत्थर को ये पावन, थमाये पुण्य का दामन,
मुसीबत में रखे सबका खरा ईमान गंगाजल
ये निर्मल नीर गंगा का। हमारी संस्कृति और देश की पहचान गंगाजल रहा सदियों से सन्तों का यही गुणगान गंगाजल सबल विश्वास है अपना, हकीकत है नही सपना,
हो खाली गोद पीले ये, तो गोदी उसकी भर जायें
ये जल क्या मंत्र है अपना, ये निर्मल नीर गंगा का। लगाले नैन से कोई, तो ज्योति उसकी बढ़ जायें लगाले भाल से कोई, मुक्कदर उसके बन जायें हैं आशाओं भरा पानी,
करोड़ो की कमाई छोड़, घर में लाओं गंगाजल
नहीं इसका कोई सानी, करें हम पर मेहरबानी, ये निर्मल नीर गंगा का। हमंे जीना तो बरसो है मगर मरने को है एक पल उजाले जिन्दगी के आज बन जायें अंधेरे कल ये शक्ति देश का दर्पण,
ये निर्मल नीर गंगा का।
विदेशी एक आकर्षण,
ये मेरे गीत का दर्शन,

Meera Ke bhajan se : Kavi Abdul Jabbar


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Bola Re Murli Wala Suraj Ki kiran se Bharat Me Bhor hogi to meera ke bhajan se By Kavi Abdul Jabbar