मीरा.....

मीरां मन हारी बावरी गिरवर गिरधारी से

क्या लेना देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

क्या धरा है हाथी घोड़े सुंदर महलों में
सब बोने मेरे मन्दिर की इस चारदीवारी से
क्या धरा है सोने चांदी सुंदर गहनों में
बैसाखी भण्ड़ार भरे, सावन में बरसे मेघ
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फलते-खिलते बाग-बगीचे, ये लहराते खेत
चंवर ढुलाते चाकर बैठे सब सरदार

पर फूल चल कर आते है ब्रज की फुलवारी से
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

फौज फांटे तोप तमन्चे हाथों में तलवार
पर बंशी भरी, तोप तमन्चों की चिंगारी सें
चलो चलें बृज करे चाकरी मुरलीधर के द्वार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।
छोड़ो राजा राज सिंहासन है सारे बेकार जन्म-जन्म का साथ करो जी कृष्ण मुरारी से हरी हरे हर पीर तुम्हारी दुःख देने वाले अमृत बरसे तुम पर मुझको विष देने वाले
“जब्बार” अमर होते है कुल ऐसी कुलनारी से
विनती यही है मेरी इस सुदर्शनधारी से क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से। सुरज चांद सितारे अपने जलथल अपरम्पार क्या धरती मेवाड़ मेड़ता अपना घर संसार
क्या लेना-देना राणा जी अब दुनियाँदारी से।

कवि अब्दुल जब्बार