Amar Shahid "अमर शहीद "


आँखों का नूर वो वतन की शान हो गए,

जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
सरहद पे सीना तान के दिन रात था खड़ा
जांबाज वो जीम से आसमान हो गए
उसके लिए तो जिन्दागी से देश था बड़ा
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
होकर अमर वो देश का ईमान हो गए
जाकत वो हौंसला थे, पयामें अमन थे वो
भारत विशाल देश के जाने चमन थे वो
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।
जिस पथ से गुजरा वीर वो फुलों से पट गया
लो देवता भी जिनके कदरदान हो गए
सीने से सूरमा के तिरंगा लिपट गया दुनियाँ ने देखा जंग में जिसके कमाल को
मेरे वतन तू उसकी शहादत को याद कर
ऊँचा किया जहान में भारत के भाल को जो मिट हम वतन पे मेहरबान हो गए जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए। उसकी वतनपरस्त इबादत को याद कर “जब्बार” वो जहान की पहचान हो गए
जो हँसते-हँसते देश पे कुरबान हो गए।

कवि अब्दुल जब्बार